Thursday 5 July 2018

Ye huni ijjat lutige nikau:इज्जत लुटिगे निकौ


यै हुणि ‘इज्जत लुटिगे’ नि कौ


    समाज में नरपिसाचों कि संख्या दिनोदिन बढ़नै जांरै | उनुकैं सजा या क़ानून क डर न्हैति | नानि गुड़िय जसि भौ बटि बुढी स्यैणि तक इनरि करतूत क शिकार बनै रईं | बलात्कार क रोजाना नईं कांडों ल हैवानियत लै शर्मसार हैगे | रात छोड़ो दिन में लै स्यैणि- जात सुरक्षित न्हैति | दुष्कर्मी बेखौप घुमें रईं | यूं वहशियों क आपण क्वे नात-रिश्त नि हुन | यूं नरपिसाच देखण में आम मैंसों जास देखिंनी जो आपण लोगों क बीच में लै हुनी पर इनरि पछ्याण करण भौत मुश्किल हिंछ | बलात्कार क मर्ज नरपिसाचों कि हैवानियत ग्रस्त लाइलाज बीमारी छ तबै त यूं एक छोटि गुड़ी जसि भौ बटि अस्सी वर्ष कि बुढ़िय तक कैं आपण शिकार बनै दिनी |


     आज हम सद्म में छ्यूं, हम दुखित छ्यूं, हम डर ल कापैं रयूं क्यलै कि हमार इर्द- गिर्द रोज बलात्कार कि घृणित घटना होतै जां रईं जनूं में दस घटनाओं में बै केवल एक ही घटना कि रिपोट पुलिस तक पुजीं | समाज विज्ञानियों क मानण छ कि ९०% रेप केस पुलिस अविश्सनियता, न्याय में देरी और सामाजिक सोच (सोसियल स्टिग्मा) क कारण चुपचाप घुटन में छटपटानै हरै जानीं | देश कैं २००५ क दिल्ली गेट रेप काण्ड, २०१० क दिल्ली धौलाकुआ दुष्कर्म केस, २०१२ क दिल्ली निर्भया हैवानियत काण्ड, य बीच अणगणत रेप कांडों और २९ जुलाई २०१६ क बुलंदशहर हाइवे रेप- लूट काण्ड ल सबूं कैं दहलै बेर धरि दे |


     दिनोदिन बढ़णी रेप केसों क मध्यनजर पुलिस या क़ानून कि तरफ देखि बेर दुःख और निराशा हिंछ | बताई जांरौ कि २९ जुलाई २०१६ की रात जो हाइवे पर य घृणित कुकृत्य हौछ उ रात पुलिस रजिस्टर में उ क्षेत्र में छै पीसीआर वाहन ड्यूटी पर छी | अगर यूं वाहन ड्यूटी पर हुना तो यसि जघन्य बारदात नि हुनि | नरपिसाचों कैं पुलिस क रवइय और अकर्मण्यता क पत्त हुंछ तबै ऊँ बेडर है बेर यस संगीन अपराध करनीं | पत्त नै य हमरि कुम्भकरणी नींन में स्येती पुलिस कब जागलि ? चाहे ज्ये लै कारण हो हमार देश में न्याय में देरी लै एक अभिशाप छ | दिसंबर २०१२ क निर्भयाकांड क चार वर्ष बितण बाद लै उ काण्ड में लिप्त नरपिसाच सजा मिली बाद लै फांसी पर नि चढ़ि राय | कभैं अपील, कभैं दुबार उखेलापुखेल, कभैं लूपहोल क लाभ ल्हीनै न्याय मिलण में देरी होतै जींछ | निर्भया ल २९ दिसंबर २०१२ हुणि तड़पि- तड़पि बेर दम तोड़ दे पर वीकि आत्मा कि आवाज आज लै हमार कानों में गूंजीं, मानो उ हमूं हैं पूछें रै, “कभणि मिललि ऊँ दरिंदों कैं फांसि ? कभणि मिलल मीकैं न्याय ?” 


     बलात्कार कि शिकार स्यैणि- जात क असहनीय शारीरिक और मानसिक पीड़ है मुक्ति मिलण भौत कठिन छ | यै है लै ठुल छ सामाजिक पीड़ क दंश | हमार समाज में क्वे ले स्यैणि या नानि दगै यसि घटना हुण पर ‘इज्जत लुटिगे’ कै दिनी जो भौत गलत बात छ और शर्मनाक छ | य सामाजिक दंश कि पीड़ यतू भयानक और अकल्पनीय छ कि कएक पीड़ित त आपणी कपोघात (आत्म-हत्या) तक कर ल्हीनी | य ठीक बात न्हैति | यस नि हुण चैन | य समाज क लिजी भौत शर्म कि बात छ | पीड़ित क यै में क्ये लै  दोष नि हय फिर उ आपूं कैं सजा क्यलै द्यो ? अगर उ टैम पर उ य दंश क  सद्म है उबरि जो तो उ आत्म- हत्या है बचि सकीं | उ बखत उकैं सामाजिक, डाकटरी और मनोवैज्ञानिक उपचार कि भौत ज्यादै जरवत हिंछ |


     दुष्कर्म पीड़िता कैं य सोचि बेर हिम्मत बादण पड़लि कि उ आपूं कैं क्ये लिजी सजा द्यो ? वील त क्वे कसूर नि कर और न वीक क्ये दोष | सिर्फ स्यैणि -जात हुण क कारण वीक शिकार हौछ | उकैं खुद आपूं कैं समझूण पड़ल कि उ एक नरपिसाच रूपी भेड़िये कि शिकार बनीं | उकैं आपणि पीड़ कैं सहन करनै, टुटि हुयी मनोबल कैं दुबार जगूण पड़ल और नरपिसाचों कैं सजा दिलूण में क़ानून कि मदद करण पड़लि जो बिना वीक सहयोग दिए संभव नि है सका | उसी लै जंगली जानवरों द्वारा बुकाई जाण पर हम इलाजै करनू | हादसा समझि बेर य घटना कैं भुलण क दगाड़ यूं भेड़ियों क आक्रमण है बचण क हुनर लै आब हरेक स्यैणि कैं सिखण पड़ल और हर कदम पर आपणि चौकसी खुद करण पड़लि | बलात्कारियों कैं जल्दि है जल्दि कठोर दंड मिलो, य पीड़ित कि पीड़ कैं कम करण में एक मलम क काम करल | आब टैम ऐगो जब समाज क बुजर्गों, बुद्धिजीवियों, धर्म- गुरुओं, पत्रकर- लेखकों, सामाजिक चिंतकों और महिला संगठनों कैं जोर-शोर ल य कौण पड़ल कि यै हुणि ‘इज्जत लुटिगे’ या ‘इज्जत तार तार हैगे’ जसि बात नि समझी जो और नि कई जो | यूं शब्दों है मीडिया- टी वी चैनलों कैं लै परहेज करण पड़ल ताकि पीड़ और निराशा में डूबी हुई पीड़ित कैं ज्यौन रौण बाट मिलि सको |


पूरन चन्द्र काण्डपाल,

05.07.2018   


No comments:

Post a Comment