Monday 23 July 2018

Sarvshaktimaan nirakaar : सर्वशक्तिमान निराकार

खरी खरी - 279 :  सर्व शक्तिमान निराकार


मंदिर-मस्जिद वास नहीं मेरा

नहीं मेरा गुरद्वारे वास,

नहीं मैं गिरजाघर का वासी

मैं निराकार सर्वत्र मेरा वास ।

मैं तो तेरे उर में भी हूं

तू अन्यत्र क्यों ढूंढे मुझे,

परहित सोच उपजे जिस हृदय

वह सुबोध भा जाए मुझे ।

काहे जप -तप पाठ करे तू

तू काहे ढूंढे पूजालय,

मैं तेरे सत्कर्म में बंदे

अंतःकरण तेरा देवालय ।

क्यों सूरज को दे जलधार तू

नीर क्यों मूरत देता डार,

अर्पित होता ये तरु पर जो

हित मानव का होता अपार ।

परोपकार निःस्वार्थ करे जो

जनहित लक्ष्य रहे जिसका,

पर पीड़ा सपने नहीं सोचे

जीवन सदा सफल उसका ।

राष्ट्र- प्रेम से ओतप्रोत जो

कर्म को जो पूजा जाने,

सवर्जन सेवी सकल सनेही

महामानव जग उसे माने ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल

24.07.2018

(पुस्तक 'यादों की कालिका' से)

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