Saturday 14 July 2018

Jagar par bindas bol : जागर पर बिंदास बोल

खरी खरी - 275 : जागर पर बिंदास बोल (खरी खरी 274, 14 जुलाई 2018 पर कुछ मित्रों कि प्रतिक्रिया)

     "मनोरंजन भी नहीं होता। ख़ाली भय का बातावरण फैलाते हैं। जी आप उचित कह रहे हैं। ये निरा अन्धविश्वास है। मेल जोल, कुशल मंगल,रिस्ते नातों के लिये तो मेले लगते थे।"-एन के ध्यानी

     "मान्यवर ध्यानी जी एक सत्य कथा जो मेरे सामने हुई।
     जगरिया बड़ा उत्साहित व्यक्ति था, क्योंकि अपने लुभावने गीतों द्वारा वो नाचने वालों नचाकर खुश करता था।दिखने और नाचने वाले खुश।
एक दिन जगरिया को बड़ी संख्या लग गई और नाचने वाले रुकें नहीं।नाचने वाले यह दिखाकर कि उसका देवता और नाचना चाहता है तू जागर क्यों बन्द कर रहा है।जगरिया का सिर झमोडने लग जाएं।बेचारा परेशान। उसने एक तरकीब सोची और गीतों में ही बोला----
"घर्यो घर्यो गुरु, हगण पुरी जांदू"
और फिर नाचण वाला और देखण वाला हंसते ही रह गए।"- वाई पी नैनवाल

    "नमस्कार सैप। हम लै भुक्त भोगी छा, जागर लगाओ सब ठीक है जाल कूनेर भाय, बाद में उई ढाक क तीन पात, फिर गंणत कर, जागर लगाओ, लगाइ, बताय पैल वाल जगरियै ल सब गलत कर दे, यो इ क्रम चलते रौ, जागर में जागर, लेकिन के लै फरक नि भय सैप, खाली जगरिया ग चार धाम,  हरिद्वार तीर्थ धुमाते रया । ठीक कुणौछा आपु तदुक डबल कति भल जाग लगाई हुनों के भल हुन अब त सैप मन में घृणा भरगे, लेकिन तैक लिजी हम जिम्मेदार नेंता, त जगरियै छन। यो जगरि बहुत प्रकांड मनोवैज्ञानिक लै हुनी यस डरै दियाल पूछो ना, चलो भल है गो आजकल क पीड़ी तनु ग पूछन लै नहैं तनार ऐसो आारामि क दिन लद गई। सैप नक लाग हुनौ ल त मांफ करिया, लेकिन यो आपबिती छ सैप।' - राजेन्द्र पांडे

     "भाई लोगो सब नाते रिश्तेदारों और परिचितों आदि के साथ भरपूर एंजाय और मित्रता व रिश्तों को और अधिक प्रगाढ़ बनाने के लिए इस ढोंगी जागर प्रथा के स्थान पर श्रीमद् भागवत कथा, रामायण, सुन्दर काण्ड,श्री सत्यनारायण कथा व शिव पुराण,व विभिन्न प्रकार के यज्ञों, हवनोंआदि वास्तविक धार्मिक अनुष्ठानों को भी तो आयोजित किया जा सकता है कि नहीं???
     यक्ष प्रश्न तो यह है कि जब जागर लगाकर देवी देवताओं की आत्माएं कुछ लोगों के शरीरों में आने की ये कपोल-कल्पित बातें जरा भी सत्य होती तो-
क्यों सिर्फ पहाड़ों में ही बाढ,भू स्खलन, बादलों के फटने की दुर्घटनाएं,उन भयावह सीढ़ीनुमा क्यारियों में हड्डी पसली तोड कर उगाई गई फसलों की  बन्दरों,सुवरों आदि द्वारा मचाई जा रही बर्बादी आदि के अलावा भयंकर जानलेवा बाघों द्वारा इन भोले भाले पहाड़ियों और इनके द्वारा गाढी मेहनत स्वरुप पाले गए गाय,बैल, भेड़ व बकरियों को मारे जाने की दुर्घटनाओं में आए दिन इजाफा क्यों हो रहा होता।वो देवी देवता क्यों नहीं इन मासूम लोगों को इन आपदाओं से हमेशा हमेशा के लिए मुक्ति का आशीर्वाद नहीं देते???

     इसलिए अब इन मनगढ़ंत किंवदंतियों से राज्यवासियों को ऊपर उठकर अपने वास्तविक हित व लोकहित के अनुष्ठानों को अपनाना होगा। ताकि जगन्नियंता परंपिता परमेश्वर भी इन सब पर अपनी दया बख्श कर इन पर अपनी प्राकृतिक आपदाओं के प्रहार व तबाही पर अंकुश लगायें।
  "जै देवभूमि"
"जय सृजनकार"- दामोदर आर्या ।

    "ये किसी समय कबिले के मुखियां के मंनोरंजन के ही साधन थे।जो धीरे धीरे एक परिपाटी बन कर हमारे संस्कृति में रच बस गई आज उससे बड़े बड़े पढ़े लिखे लोग बुद्धिजीवी भी बहार नहीं निकलना चाह रहे हैं,अन्ध विश्वास इतना ज्यादा कि यदि कोई दूसरा इससे दूर भी रहना चाहता तो उसे परिवार व बच्चों का भय दिखाया जाता है।" - बसन्त जोशी

     "समय के साथ बदलाव जरूरी है आँख बंदकर अंधविस्वास को स्वीकार नही किया जा सकता। एक सार्थक पक्ष ये है इसी बहाने लोग एकजुट होते है सालो बाद अपनों अपने नजदीकी रिस्ते नातो से मिलना जुलना भी इन अनुष्ठानो का मकसद रहा होगा समाज में समरसता सुखदुःख हालचाल जानने के अवसर और अदृश्य भय से पार पाने का आत्मविस्वाश जुटाने का शानदार अवसर रहा होगा।' - नंदन मेहता

     "हमेर बढ़बाज्यूल एक बार एक डंगरि जैके द्यबात आरोछी , छिलुक रांख खुट में च्याप दी बल, देबात गायब उ बौई गोछि बामण ज्यू झि लाग गे, खुट में छाल पड़ गो ,तब बढ़बाज्यूल कौ कि राम सिंह! त्यू कणि द्यबात आरोछी ,झी नि लांगण चांछी,त्यर देबात् जब त्युकणि आगैल नि बचा सक तो मसाण कसिक भाजल् ? उस दिन के बाद से वह कभी हमारे गाँव में जागर लगाने नहीं आया बल।" - प्रमोद मिश्रा

     "ये अंधविश्वास में लिप्तता एक मानशिक रोग के सामान ही है
कुछ लोगों ने इससे धंधा बना लिया। और तो और पड़े लिखे लोग भी इस से बहार नहीं निकलना चाहते । दस जगारिये बुला लो दस अलग अलग कारण बताएंगे ऐसा
क्यों ।  ये सब से बहार निकलना जरुरी है ।  आप के कथन का स्वागत है ।"-जे एस कैड़ा

    सबै टिप्पणीकारों क दिल बटि व्यथा- वेदना- कहानि बतूणक लिजी अभारि छ्यूँ । लोगोंल आप बीती बतूण चैंछ । बस म्यर यतुक्वे कूंण छ कि लोगोंल अंधविश्वासक वडयार है भ्यार ऊँण चैंछ और खुलि बेर विरोध करण कि हिम्मत देखूण चैंछ । 19 जुलाई हैं बिरखांत -221 जरूर पढ़िया सैबो । धन्यवाद ।

(टिप्पणियां क्रम में नहीं हैं । कुछ प्रतिक्रियाएं रह गई हैं , क्षमा चाहता हूँ ।)

पूरन चन्द्र काण्डपाल
15.07.2018

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