Monday 11 June 2018

Haldwani : हल्द्वानी

खरी खरी -254 : हल्द्वानी की बात

      कुमाऊँ का द्वार कहे जाने वाले नगर हल्द्वानी में मेरे बहुत से मित्र रहते हैं । डॉ जे सी पंत, आ.पी सी पपनै, दामोदर जोशी 'देवांशु', प्रकाश चन्द्र काण्डपाल, राजेन्द्र ढैला, लेखक किरमोलिया, जी बी बहुगुणा, जगदीश जोशी, प्रोफेसर एस एस बिष्ट, से.नि.प्रिंसिपल जी लाल आदि सहित सैकड़ों मित्र, सम्बन्धी एवं परिचित हल्द्वानी में रहते हैं । सभी का नाम लिखूं तो एक पुस्तिका बन जाएगी । (जैक नाम नि लेख सक ऊँ नक झन मानिया ।) पर्वतीय क्षेत्र के कई लोग अब कुमाऊँ क्षेत्र से आकर इस द्वार में बसने लगे हैं । सच कहूं तो खानाबदोशी का यह पहला पड़ाव है । यहाँ भीड़-भाड़ ने सुकून के जीवन को हथिया लिया है । सबकी जमापूंजी यहां पानी-बिजली की किल्लत होने के बावजूद एक अदद आशियाना बनाने में जुटी है ।

     आजकल हल्द्वानी मीडिया में अधिक जगह पा रहा है । इस शांत नगर में अपराध बढ़ने लगे हैं । अधिक उपापोह होने लगी है । सामाजिक सरोकार घटने लगे हैं । सब बड़े- बड़े मकान बनाने में व्यस्त हैं । इन बड़े मकानों में अधिकांश खाली हैं या उनमें वृद्धों का एक अकेला जोड़ा या अकेला पंछी रहता है । किसी को अपनी विलुप्त होती भाषा, संस्कृति या सामाजिक सरोकारों से कुछ लेना- देना नहीं है । जल- जंगल- जमीन- टैंकर और अवैध कब्जा माफिया यहाँ चरम पर है ।

     आंखों देखी बताऊं तो आम जीवन की वस्तुओं में  मिलावट भी यहां खूब गुलजार है । दूध, खोया, पनीर, क्रीम सहित सभी अधिकांश दुग्ध उत्पाद मिलावट से भरे हैं । लीची में लाल रंग स्प्रे किया जा रहा है । सभी सामाजिक आयोजनों में इन मिलावटी उत्पादों का भरपूर उपयोग हो रहा है । आयोजक तो उत्तम भोजन का भुगतान करता है परन्तु ठेके के कैटरिंग की उस हिसाब से गुणवत्ता नहीं होती । लगनों के सीजन में मांग अधिक होने से लगभग सभी वस्तुओं में मिलावट चरम पर पहुंच जाती है ।

     हल्द्वानी में लोग अब कुमाउनी भाषा से भी परहेज करने लगे हैं । डीजे में उत्तराखंडी गीतों की जगह फूहड़ गीत बजने लगे हैं जिनमें पूरा परिवार एकसाथ नाचता है । समारोहों में केटरिंग वाले, टेंट वाले, वीडियो वाले, पानी के टैंकर वाले सब कमा रहे हैं परन्तु आयोजक देखादेखी मजबूरी में लुट रहा है । शराब- गुटखा- धूम्रपान - चरस-गांजा  अपनी जड़ जमाये हुए हैं । कूड़ा और गंदगी का भी जहां -तहां  भरपूर दीदार होता है भलेही कुछ सफाई अभियान भी देखने को मिले ।

     नगरवासियों को थोड़ा सा समय निकालकर हल्द्वानी की यह गुहार सुननी ही होगी -

"संभालो इस नगर को
तुमसे हल्द्वानी कह रहा,
बचालो इस बाग को
क्यों जहर इसमें बह रहा,
आने न दो विष बाड़ को
तन-मन मेरा है जल रहा,
मत रहो बन तमाशबीन
अस्तित्व मेरा ढह रहा ।"

(इस खरी खरी से इत्तफाक नहीं रखने वालों से अग्रिम क्षमा । हो सकता है कुछ क्षेत्रों में सबकुछ ठीकठाक हो । लेकिन मसमसै सब रईं, गिचल क्वे के नि कूं रय ।)

पूरन चन्द्र काण्डपाल
12.06.2017

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