खरी खरी - 256 : नदियों को बचाओ
नदियों को माता-माता भी कहेंगे और विसर्जन सहित उसमें सभी प्रकार का कूड़ा भी डालेंगे ? यह दुःखद है और हास्यास्पद है । पानी घट गया और जनसंख्या बढ़ गई । प्रथा-परम्परा बदलनी पड़ेगी । उत्तराखंड में जिस शादी में 8 घण्टे लगते थे अब दिन में आधे घंटे में हो रही है । उत्तराखंड की परम्परा में शराब भी नहीं थी । आज शराब के बिना कुछ भी नहीं । जब नदी पूरी तरह नामेट हो जाएगी तब लोग किस नदी के किनारे शवदाह करेंगे औऱ किस नदी में शव की राख बहाएंगे ? यमुना के कुछ भाग में इसका अस्तित्व मिट गया है जिसकी लंबाई 150 कि मी बताई जा रही है ।
मैं वही कहता हूँ जो किया जा सकता है । अब तक मोटिवेट करके एक दर्जन से अधिक शवों का दाह CNG प्लांट निगमबोधघाट में करा चुका हूँ । निगमबोधघाट पर 6 CNG प्लांट हैं । ₹1000/- देना पड़ता है और 1 घंटा 20 मिनट में शवदाह हो जाता है । थोड़ी सी राख बचती है जिसे पास ही के पेड़ों तले जमीन में डाल दिया जाता है । नदी में डाली जाने वाली राख भी मिट्टी में ही मिलती है ।प्रतीक के तौर पर दो मुठ्ठी शवदाह की राख नदी में बहाईं जा सकती है ।
CNG में दाह से एक पेड़ बचता है, यमुना बचती है, पर्यावरण बचता है, समय बचता है, प्रदूषण से मुक्ति मिलती है और धन भी बचता है जिसे स्वेच्छा से दान किया जा सकता है । हमें नदियों को मां कहने का हक तभी है जब हम उन पर मां जैसी श्रद्धा रखें ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
15.06.2018
No comments:
Post a Comment