Thursday 14 June 2018

Aarakshan : आरक्षण कब तक

बिरखांत – 216 : आरक्षण किसे और कब तक

     आरक्षण का जिन्न यदाकदा बोतल से बहार आते रहता है |  सोसल मीडिया पर भी इस मुद्दे पर खूब बहस होते रही है | वर्ष 1950 में देश का संविधान लागू होते समय एस सी और एस टी के लिए मात्र दस वर्ष तक आरक्षण की व्यवस्था की गयी थी | तब से 68 वर्ष हो गए हैं आरक्षण दस-दस वर्ष बीतते हुए आगे खिसकते जा रहा है | जिस प्रकार गैस सिलिंडर छोड़ने की बात हो रही है उसी तरह हमारे सांसद- विधायक एवं अन्य प्रतिनिधियों को भी आरक्षण का लाभ केवल एक पीढ़ी के बाद छोड़ देना चाहिए ताकि यह लाभ उसी वर्ग में किसी अन्य को मिल सके |

     वर्तमान में कुल आरक्षण ओ बी सी को मिलाकर 50 % को पार कर गया है | आरंभिक दौर में यह उचित था कि निम्न वर्ग अथवा कमजोर  तबकों को आरक्षण दिया जाए | आज आरक्षण का लाभ अरक्षित वर्ग की क्रीमी लेयर ले रही है जबकि यह उसी वर्ग के गरीबों तक नहीं पहुंचा | देश में उच्च वर्ग अथवा उच्च जाति के गरीबों की संख्या भी बहुत है | अल्पसंख्यकों में भी बहुत लोग पिछड़े हुए हैं | 68 वर्षों से  आरक्षण के मुद्दे पर बहुत ऊर्जा व्यय हो चुकी है तथा कई लोग मारे भी गए हैं फिर भी ढाक के तीन पात |

     वोट बैंक की राजनीति उचित कदम नहीं उठा पा रही है | यदि हमारे देश में आरक्षण देना ही है तो इसका एकमात्र आधार आर्थिक होना चाहिए, जाति या वर्ग के आधार पर नहीं | दूसरा विकल्प यह है कि आरक्षण के बजाय गरीब तबकों को मुफ्त उच्च शिक्षा दी जानी चाहिए ताकि वे शिक्षित होकर प्रतियोगिता स्तर तक पहुँच सकें | सभी वर्ग के गरीबों को मुफ्त प्रतियोगी शिक्षा और प्रशिक्षण ही आरक्षण की समस्या का एकमात्र हल है |

      राष्ट्रीय रक्षा अकादमी पूने  और भारतीय सैन्य अकादमी देहरादून में आरक्षण नहीं है | देश में सैन्य अधिकारियों के करीब ग्यारह हजार पद रिक्त हैं | देश के युवाओं को अपनी योग्यता के बल पर इस ओर भी कदम बढ़ाने चाहिए | 50 -55 % अंकों के साथ इन्टर पास युवा इसके लिए वर्ष में दो बार आवेदन कर सकता हैं | इतिहास साक्षी है कि देश में गरीब तबकों के कई लोगों ने बिना आरक्षण के भी अपनी अमिट छाप छोड़ी है |

     आरक्षण की आग से देश को पहले भी बहुत नुकसान हो चुका है और सामाजिक सौहार्द भी कई बार बिगड़ चुका है | आये दिन के इन आन्दोलनों से देश की जो क्षति हुई है उसकी भरपाई कभी भी नहीं हो सकती | अहिंसक आन्दोलन को हिंसा से दबाने की प्रतिक्रिया भयानक होती है जैसा कि कई बार  देखने को मिला है | एक झटके में कई जानें चली जाती हैं अर्थात कई घर उजड़ जाते हैं | इन आंदोलनों से जो बसें जल कर राख हो गईं हैं पता नहीं उनके बदले में दूसरी बसें कब आयेंगी या आयेंगी भी कि नहीं ?  अगली बिरखांत में कुछ और ....

पूरन चन्द्र काण्डपाल
14.06.2018

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