खरी खरी -263 : याद है आपातकाल
आपातकाल की याद में प्रतिवर्ष 25 जून को तत्कालीन सरकार को उनके विरोधी खूब गरियाते हैं । तीन तरह के आपातकाल का प्रावधान संविधान में है । यदि यह अनुचित है तो इसे हटाया क्यों नहीं जाता ? उस दौर का (25 जून 1975 से 21 मार्च 1977, 21 महीने का आपातकाल ) दूसरा पहलू भी है । वे दिन याद हैं जब बस- ट्रेन समय पर चलने लगे थे, कार्यालयों में लोग समय पर पहुंचते थे और जम कर काम करते थे , तेल- दाल- खाद्यान्न सस्ते हो गए थे, काले धंधे वाले और जमाखोर सजा पा रहे थे, देश में हर वस्तु का उत्पादन बढ़ गया था और भ्रष्टाचार का नाग कुचला जा चुका था, शिक्षा प्रोत्साहित हुई थी ।
आपातकाल के बाद 1977 में चुनाव हुए और जनता पार्टी का राज आया परंतु यह राज मात्र 26 महीने ही रहा । आश्चर्य की बात तो यह है कि इंदिरा गांधी फिर सत्ता में आ गयी । सवाल उठता है कि यदि आपत्काल बुरा था तो इंदिरा गांधी इतनी जल्दी वापस कैसे आ गयी? आपत्काल का सबसे बुरा पहलू प्रेस पर सेंसर लगाना था और नीम-हकीमों द्वारा नसबंदी आप्रेसन से बिगड़े केसों का खुलकर प्रचार भी विरोधियों ने किया था ।
आज भी मंहगाई, भ्रष्टाचार, नारी हिंसा, दलित हिंसा, अपराध और अकर्मण्यता कम नहीं हुई है । ट्रेनों के बारे में सब जानते हैं कि कोई भी ट्रेन समय पर नहीं पहुँचती । 43 वर्ष पहले जो हुआ उससे हमने कुछ भी नहीं सीखा । आपातकाल के बारे में पक्ष-विपक्ष में आज भी जम कर बहस होती है । यह हमारे प्रजातंत्र की खूबी है परन्तु हम सुधरते नहीं, यह दुःख तो कचोटता ही है । जिस दिन हम कर्म- संस्कृति को दिल से अपना लेंगे उस दिन हमारा देश उन देशों में मार्केटिंग करेगा जो हमारे देश में अपना बाजार ढूंढते हैं ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
25.06.2018
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