Wednesday 27 June 2018

Chanarada ki baat : चनरदाकि बात

बिरखांत- 218 : चनरदा कि बात

    चनरदा बाबाओं क पाखण्ड और उनार सेवकों क अन्धविश्वास देखि दुखी छीं । बतूं रईं, "जैल हमू कैं 'अ आ -क ख' सिखाईं, इस्कूल-कालेजों में शिक्षा दी, हाम ऊं मास्टरों-अध्यापकों -गुरुजनों कैं भुलि गोयूं । हमूं कैं दुसरि गुरुभक्ति की बिमारी लैगे । कबीर दास ज्यू ल जो साधु कि बात करी ऊं सब अदप है गईं ।

    हमर देश आब दुसार किस्मक संत, गुरु, सदगुरू, तांत्रिकों ल भरीगो । इनू में असंतों कि ज्यादै भरमार छ । हालों में कएक असंत जेल न्हैगीं । एक असंत और वीक च्यल जेल में सडैं रौ । हमार अंधविश्वासी भक्त फिर लै इनार चंगुल बै भ्यार नि ऊँ राय।  आब त बाबाओं कैं जेड सुरक्षा लै मिलैं फैगे । कुछ बाबा त मंत्री - मुख्यमंत्री लै बनि गईं । कुछ लोग बाबा कैं दूद ल नवै बेर उ दूद कि खीर पकै बेर खां रईं ।

     उत्तराखंड में चिलम- सुल्प धारी बाबा छीं, शराब- सिगरेट- सुट्ट वाल बाबा छीं ।  यूँ नशेड़ी, पाखंडी, व्यभिचारी, बाबाओं क नाम पर कलंक लगूणी असंत कैक कके भल कराल?  लोग आपणी समस्या समाधानक लिजी यूं पाखंडियों कि शरण में किलै जां रईं ?  जरा चर्चा करो धैं!"

    चनरदा ल एक भलि खबर लै बतै । उनूल बता, "परंपरा मैंस  बणूनी, मैंसों कैं परंपरा नि बनून ।  ब्याक दिन सात फ्यार सबै ल्ही रईं । यूं फ्यारांक मतलब कैकैं मालुम न्हैति ।  न क्वे पुछन, न क्वे बतून । शॉटकट करो, फटाफट करो, दाम-दक्षिण मुणी धरो, हैगो ब्या ।

      हरयाणा में नवम्बर २०१४ में एक ब्या में एक ज्वड़ल एक फ्यार ज्यादै लगा, आठ फ्यार लगाईं । आठूं फ्यार में उनूल पेड़ लगै बेर पर्यावरण बचूंण कि कसम खै । उनर य आठूं फ्यार अखबार- टीवी कि खबर बनौ । ब्योलि क बौज्यूल लै उदिन कएक डाव-बोट रोपीं । य परंपरा अपनोंण चैंछ ।

         पैली बै 'मैती आंदोलन' में उत्तराखंड में ब्योलिक दगड़ी य ई काम करछी । आब सिर्फ ज्वत कि रकम ऐठनीं, रिबन काटिए कि इंट्री फीस मांगनीं, बस । ब्योलिक सखियोंल 'मैती आंदोलन' कैं ज्यौंन धरण चैंछ ।  अघिल बिरखांत में के और बात...

   (य चनरदा को छ ? चनरदा लेखक क भौत पुराण किरदार छ ।  य हमू में बै क्वे लै है सकूं । चनरदा क सही नाम चनरिय , चनर सिंह, चन्द्र दत्त, चनर राम, चन्द्र बल्लभ के लै है सकूं पर सब उनुहैँ चनरदा ई कौनी । चनरदा ज्यौन लाश न्हैति, उ मसमसाट नि पाड़न । उ गिच खोलण कि हिम्मत धरूं और सबूं हैं सामाजिक विषमताओं पर गिच खोलण कि उम्मीद करूं । )

पूरन चन्द्र काण्डपाल
28.06.2018

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