खरी खरी - 176 : लाटरी
बिना कर्म कुछ पा जाने की
जब इच्छा मन में उठती है,
शिथिल कर्मेन्द्रियां बन जाती हैं
अलसाई छा जाती है ।
पल भर में धनवान बनूं
वैभव की दुनिया दिखती है,
ज्ञान बुद्धि के स्रोतों पर
तह पर्दे की चढ़ती है ।
मेहनत के बल लिख तकदीर
छोड़ लाटरी चंचल धुन,
लत विनाश की ज्वाला यह
बहुत बड़ा मानव अवगुन ।
जीवन दूजा नाम कर्म का
कर्म की राह पर चलता चल,
बिन बोए फसल न उपजे
भाग्य भरोसे मिले न फल ।
लाटरी की खुशहाली से
कोई जन न पनपते देखा है,
परिश्रम से दुनिया को
तकदीर बदलते देखा है ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
16.02.2018
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