Sunday 25 February 2018

Lakh ka khaak : लाख का खाक होना

खरी खरी -185 : लाख क है जां खाक

मंखियैक जिंदगी
लै कसि छ,
हव क बुलबुल
माट कि डेल जसि छ ।

जसिक्ये बुलबुल फटि जां
मटक डेल गइ जां,
उसक्ये सांस उड़ते ही
मनखि लै ढइ जां ।

मरते ही कौनी
उना मुनइ करि बेर धरो,
जल्दि त्यथाण लिजौ
उठौ देर नि करो ।

त्यथाण में लोग कौनी
मुर्द कैं खचोरो,
जल्दि जगौल
क्वैल झाड़ो लकाड़ समेरो ।

चार घंट बाद
मुर्द राख बनि जां,
कुछ देर पैली लाख क छी
जइ बेर खाक बनि जां ।

मुर्दा क क्वैल बगै बेर
लोग घर ऐ जानीं,
घर आते ही जिंदगी की
भागदौड़ में लै जानीं ।

मनखिये कि राख देखि
मनखी मनखी नि बनन,
एकदिन सबूंल मरण छ
यौ बात याद नि धरन ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
26.02.2018

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