Thursday 19 August 2021

Jaswant garh ka jaswant : जसवंत गढ़ का जसवंत

स्मृति - 633 : जसवंतगढ़ में जिंदा है "जसवंत"

      लगातार 72 घंटे अकेले चीनी सेना से भिड़ने वाला सैनिक, जिसकी आत्मा अब भी सीमा की सुरक्षा करती है आज 19 अगस्त को उस शहीद सैनिक का जन्मदिन है जिनका नाम जसवंत सिंह रावत है । 1962 के युद्ध में उसने पूर्वी छोर पर अकेले ही 72 घंटे तक चीनी सेना से मोर्चा लिया था । कहा जाता है कि आज उसकी आत्मा पूर्वी छोर की रक्षा करती है ।


वे आज इस दुनिया में नहीं है फिर भी उनको प्रमोशन मिलता है और छुट्टी भी मिलती है। सेना के दैनिक नियम उनके साथ आज भी साझे किए जाते हैं।  उन्होंने अकेले 72 घंटे तक चीनी सैनिकों का डटकर मुकाबला किया था और 300 से ज्यादा चीनी सैनिकों को मार गिराया था। इसी वजह से उनको इतना सम्मान मिलता है।


       


     जसवंत सिंह रावत उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले के रहने वाले थे। उनका जन्म 19 अगस्त 1941 को हुआ था। उनके पिता गुमन सिंह रावत थे। जिस समय शहीद हुए उस समय वह राइफलमैन के पद पर थे और गढ़वाल राइफल्स की चौथी बटालियन में मात्र एक वर्ष से सेवारत थे। उन्होंने 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान अरुणाचल प्रदेश के तवांग के नूरानांग की लड़ाई में अहम भूमिका निभाई थी। 14,000 फीट की ऊंचाई पर करीब 1000 किलोमीटर क्षेत्र में फैली अरुणाचल प्रदेश स्थित भारत-चीन सीमा युद्ध का मैदान बनी थी। यह इलाका जमा देने वाली ठंड और दुर्गमता के लिए जाना जाता है । इन इलाकों में जाने भर के नाम से लोगों की रूह कांपने लगती है लेकिन वहां हमारे सैनिक लड़ रहे थे। चीनी सैनिक भारत की जमीन पर कब्जा करते हुए हिमालय की सीमा को पार करके आगे बढ़ रहे थे। चीनी सैनिक अरुणाचल प्रदेश के तवांग से आगे तक पहुंच गए थे। भारतीय सैनिक भी चीनी सैनिकों का डटकर मुकाबला कर रहे थे।

     चीनी सैनिकों से भारतीय थल सेना की चौथी गढ़वाल राइफल्स लोहा ले रही थी जो  जसवंत सिंह की बटालियन थी। लड़ाई के बीच में ही संसाधन और जवानों की कमी का हवाला देते हुए बटालियन को वापस बुला लिया गया लेकिन जसवंत सिंह ने वहीं रहने और चीनी सैनिकों का मुकाबला करने का फैसला किया । स्थानीय किवदंतियों के मुताबिक, उन्होंने अरुणाचल प्रदेश की मोनपा जनजाति की दो लड़कियों नूरा और सेला की मदद से फायरिंग ग्राउंड बनाया और तीन स्थानों पर मशीनगन और टैंक रखे। उन्होंने ऐसा चीनी सैनिकों को भ्रम में रखने के लिए किया ताकि चीनी सैनिक यह समझते रहे कि भारतीय सेना बड़ी संख्या में है और तीनों स्थान से हमला कर रही है । नूरा और सेला के साथ-साथ जसवंत सिंह तीनों जगह पर जा-जाकर हमला करते। इससे बड़ी संख्या में चीनी सैनिक मारे गए। 

     इस तरह वह 72 घंटे यानी तीन दिनों तक चीनी सैनिकों को चकमा देने में कामयाब रहे। लेकिन दुर्भाग्य से उनको राशन की आपूर्ति करने वाले शख्स को चीनी सैनिकों ने पकड़ लिया। उसने चीनी सैनिकों को जसवंत सिंह रावत के बारे में सारी बातें बता दीं। इसके बाद चीनी सैनिकों ने 17 नवंबर 1962 को चारों तरफ से जसवंत सिंह को घेरकर हमला किया। इस हमले में सेला मारी गई लेकिन नूरा को चीनी सैनिकों ने जिंदा पकड़ लिया। जब जसवंत सिंह को अहसास हो गया कि उनको पकड़ लिया जाएगा तो उन्होंने युद्धबंदी बनने से बचने के लिए एक गोली खुद को मार ली। सेला की याद में एक दर्रे का नाम सेला पास रख दिया गया है। जसवंत को मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया। 

     कहा जाता है कि चीनी सैनिक उनके सिर को काटकर ले गए। युद्ध के बाद चीनी सेना ने उनके सिर को लौटा दिया। अकेले दम पर चीनी सेना को टक्कर देने के उनके बहादुरी भरे कारनामों से चीनी सेना भी प्रभावित हुई और पीतल की बनी रावत की प्रतिमा भेंट की। कुछ कहानियों में यह कहा जाता है कि जसवंत सिंह रावत ने खुद को गोली नहीं मारी थी बल्कि चीनी सैनिकों ने उनको पकड़ लिया था और फांसी दे दी । जिस चौकी पर जसवंत सिंह ने आखिरी लड़ाई लड़ी थी उसका नाम अब जसवंतगढ़ रख दिया गया है और वहां उनकी याद में एक मंदिर बनाया गया है। मंदिर में उनसे जुड़ीं चीजों को आज भी सुरक्षित रखा गया है। कुछ सैनिक उस मंदिर की देखरेख करते हैं । सैनिकों के अनुसार जसवंत उस स्थान पर आते हैं और अदृश्य ही चले जाते हैं। जसवंत की मृत्यु के बाद भी प्रमोशन मिला । राइफलमैन के पद से वह प्रमोशन पाकर हवलदार मेजर बन गए । वर्ष 2012 में जसवंत के माता/पिता के दिवंगत होने के बाद अब उनकी पेंशन स्वत: ही बंद हो गई और अब उनके छुट्टी आने की चर्चा भी बंद हो गई। 

      सेना के जवानों का मानना है कि अब भी जसवंत सिंह की आत्मा चौकी की रक्षा करती है। उन लोगों का कहना है कि वह भारतीय सैनिकों का भी मार्गदर्शन करते हैं। अगर कोई सैनिक ड्यूटी के दौरान सिथिल पड़ जाता है तो वह उनको जगा देते हैं। उनके नाम के आगे शहीद नहीं लगाया जाता है और यह माना जाता है कि वह ड्यूटी पर हैं । बताया जाता है कि देश के जांबाज सैनिक जसवंत सिंह रावत के जीवन पर अविनाश ध्यानी ने एक फिल्म भी बनाई है जिसका नाम '72 आर्स मार्टियार हू नेवर डाइड' है । भारत माता के ऐसे वीर सैनिक को हम नमन करते हैं। 

( लेख के कुछ अंश साभार संपादित गूगल मीडिया ।)

पूरन चन्द्र कांडपाल


19.08.2021



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