Sunday 29 August 2021

Budhaapaa (2) : बुढ़ापा (2)

बिरखांत - 399 :बुढ़ापा ! चल हट (2, पिछले अंक का शेष भाग)

      पिछले अंक, बिरखांत - 398, 29.08.2021 से केआगे...

     चनरदा बोले, “अभी बहुत कुछ है बताने को |” मैंने कहा लगे हाथ बता ही डालो ना | मुफ्त की सलाह मिल रही है, कई लोगों का भला हो जाएगा | आजकल तो लोग काउंसलिंग के लिए जाते हैं और यही टिप्स लेने की हैण्डसम फीस दे आते हैं |” चनरदा बड़े इत्मीनान से बोले, “अपने से बड़ी उम्र के कुछ सेलिब्रिटीज पर नजर डालो | बिग-बी अठत्तर के हो गए हैं | अभी कुछ ही वर्ष पहले निशब्द, चीनी कम और कजरारे- कजरारे कह रहे थे | देवानंद अंतिम दिनों तक युआ हीरो बन कर घूम रहे थे | वरिष्ठतम राजनीतिज्ञ कुर्सी से सटे पड़े हैं, बल्कि ये लोग तो कभी बूढ़े होते ही नहीं, भलेही शरीर भी क्यों न जबाब देदे | अमेरिका के राष्ट्रपति जो बिडेन 78 के हो गए हैं जो 82 वर्ष तक कुर्सी में विराजमान रहेंगे।"

      मैंने चनरदा से वार्ता जारी रखी, “भाई साहब आपने अपने को ‘मेनटेन’ किया है | सत्तर से ऊपर होने पर भी साठ के दिखने का कोई तो फार्मूला होगा तुम्हारे पास |” चनरदा चुस्ती से बोले, “हाँ है, एक छोटा सा- ‘हंसो हंसाओ, टेंसन भगाओ; जीओ जीने दो, कमा कर खाओ |’ लेकिन- किन्तु- परन्तु की छतरी मत खोलो | इसी फार्मूले से ‘मेनटेन’ रही मेरी तरुणाई को देखकर मेरे सहकर्मी भी हमेशा जलते- कुढ़ते रहे | कुछ ही वर्ष पहले जब भी कोई तरुणी कार्यालय में मेरे पास आती तो मेरा एक सहकर्मी अपना काम छोड़कर तुरंत वहाँ आ जाता और उसके सामने जोर से पूछता, “अरे भई कैसी है तेरी पोती ?” मैं कहता, “ठीक है |” अपना कार्य निबटा कर जब वह महिला चली जाती तो मैं अपने इस निखट्टू सहकर्मी से पूछता, “क्यों बे तूने मेरी कुशल नहीं पूछी, बीवी-बच्चों की नहीं पूछी, सीधे पोती की ही क्यों पूछी ?” वह बोला, “ताकि सामने वाले को पता चल जाए तू बूढा है और दादा बन गया है | तेरी सूरत देखकर कोई तुझे जवान न समझे |”

     इसी तरह एक दिन मैं अपनी ‘प्रिय’ भार्या के साथ गलती से सायंकाल  के समय मुहल्ले में घूम रहा था | मेरे पत्नी ने गृहलक्ष्मी स्टाइल की साड़ी पहन रखी थी और मैंने बेटे द्वारा रिजेक्टेड सफ़ेद निकर और सफ़ेद टी-शर्ट पहन रखी थी | हम धीरे –धीरे चहलकदमी कर रहे थे | अचानक मेरी पत्नी की परिचित एक वरिष्ठ महिला बिलकुल हमारे पास से गुजरी | पत्नी के साथ ही मैंने भी उससे नमस्ते कहा | मुझे एक झलक देखकर मेरी पत्नी से वह  “बेटा कब आया” कहते हुए आगे निकल गई |  हम दोनों जिन्दगी में पहली बार खिलखिला कर एक साथ हंस पड़े | भला हो उस बेचारी का जो उसने मुझे पत्नी के सामने जोर से हंसने का सुअवसर दिया | हंसी थमने के बाद मेरी पत्नी बोली, “इस आंखफुटी को तुम मेरे बेटे जैसे कैसे नजर आ गए ?” मेरी हंसी थम नहीं रही थी | पत्नी बोली, “ज्यादा मत उछलो, उम्र के हिसाब से औकात में रहो | दादा बन गए हो, अब भी अपने को बूढ़ा नहीं मानते |”

      चनरदा अपना पत्नी प्रेम खुलकर प्रकट करते हुए बोलते गए, “मेरी भार्या कहती है मैं महिलाओं से हंस- हंस कर बोलता हूँ | मैंने कहा, रो कर तो तुमसे भी नहीं बोलता हूँ, हाँ डर कर जरूर बोलता हूँ क्योंकि मैं डी.टी.एच. हूँ अर्थात डरपोक टाइप हसबैंड | डी टी एच बन कर रहने में ही ब्रेकफास्ट, लंच और डिनर की नियमित प्राप्ति सुनिश्चित है | हास्य रस के गुलकंद- स्वाद में डूबे हुए चनरदा बताते हैं, “मुझे तब बड़ी निराशा होती है जब मैं वरिष्ठ नागरिकों को ताश का सहारा लेकर बैठे आपस में गाली- गलौच (उनकी प्रेम की भाषा) करते हुए देखता हूँ, धूम्रपान या शराब में डूबा हुआ देखता हूँ | वरिष्ठ नागरिकों को किसी न किसी सृजनात्मक कार्य से जुड़ना चाहिए ताकि अंत तक उनका सम्मान होता रहे | ताश खेलने के बजाय बच्चों के साथ खेलो या सामाजिक सरोकारों से स्वयं को जोड़ लो | तुम्हारे यहाँ से जाने के बाद कोई तो याद करेगा तुम्हें |” जीवन का एक उद्देश्य बना रहे, ‘अपना काम स्वयं करो और जब तक जिन्दा हो जी भर के जीओ और जीने दो |’

      बात समाप्त होने को थी | मेरे निवेदन पर चनरदा ने अंत में खाने- पीने के बारे में बताया, “जहां तक खाने -पीने का प्रश्न है, यदि मेरी तरह यंग ओल्ड मैन बन कर जीना है तो गम को खाओ और क्रोध को पीओ | वैसे मैं पिलसन (पैंशन) खा रहा हूँ और पीने की बात न तो पहले थी और न अब है | फ्री की भी नहीं पीता | बीयर भी नहीं | होली, दिवाली, शादी, सगाई, नामकरण या किसी के जन्मदिन पर भी नहीं | इन समारोहों में ‘मुफ्त’ की पी कर लोगों को लड़खड़ाते, बडबडाते, घिघियाते, मिमियाते, ऐंठते, झगड़ते देखकर वैसे ही मन भर जाता है | तू जिंदा है तो जिंदगी में जीत की यकीन कर...

पूरन चन्द्र कांडपाल
30.08.2021

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