Saturday 7 August 2021

Jagar sansamaran 7 : जागर संस्मरण 7

बिरखांत - 391 :संस्मरण .7 :  जागर नहीं है मर्ज की दवा (ii, समापन )

     ( पिछले लेख, 07.08.2021 से आगे)

... आरम्भ में ढोल- तासे की आवाज मंद होती है जो धीरे-धीरे जोर पकड़ती हुई कड़कीली हो जाती है | तब वह क्षण आता है जब ढोल- तासे के शोर में कुछ भी सुनाई नहीं देता | सारा वातावरण गुंजायमान हो जाता है और इसके साथ ही डंगरिया नाचने लगता है | सौंकार और पंच- कचहरी हाथ जोड़कर  स्वागत करते हैं | महिलाएं चावल और फूल चढ़ाती हैं | इसके बाद सौंकार अपनी समस्या देव के सम्मुख रखता है | उत्तर में समस्या पनपने के इने- गिने परम्परागत कारण डंगरिए द्वारा बताये जाते हैं जैसे- देव पूजा न करने से देवता रुष्ठ हो गए हैं, बुजर्गों का हंकार (श्राप) है, पांच या सात पीढ़ी की बुढ़िया लगी है, पुरखों ने बेईमानी की थी, कई पीढ़ी के पुरखों ने फलाने का हक़ मारा था, भूत- मसाण –हवा का प्रकोप है आदि | भूत- मसाण- हवा की जागर में तो महिलाओं को भी पंच-कचहरी के सामने लोटते –लुड़कते हुए देखा जा सकता है |

     जागर आयोजन का आदेश अक्सर ‘गणतुओं’ (पुछारियों) द्वारा उचैंण (मुट्ठी भर चावल तथा एक फूल) खोलने के बाद दिया जाता है | समस्या के पनपते ही उचैंण एक कपड़े के टुकड़े में बाँध दी जाती है जिसे गणतुआ (स्वयंभू आत्मज्ञानी स्त्री या पुरुष ) समस्या का कारण बताता है और जागर आयोजन की सलाह देता है | प्रथम जागर में एक निश्चित अवधि, दो- तीन सप्ताह या अधिक दिनों में समस्या समाप्त होने के बाद पूजा करने का संकेत दिया जाता है | यदि निश्चित अवधि में समस्या का निवारण नहीं हुआ तो पुन: जागर आयोजित की जाती है | कुल मिलाकर इसमें पहली जागर की बात दोहराई जाती है साथ ही एक सप्ताह की निश्चित अवधि या जितना शीघ्र हो सके पूजा आयोजन का आदेश दिया जाता है | पूजा के लिए आवश्यक सामग्री मंगाई जाती है जिसमें एक या अधिक बकरियां, मुर्गे और शराब का होना जरूरी है | यह पूजा रात को किसी सुनसान जंगल या गधेरे में होती है जहां मांस- मदिरा मिश्रित उन्माद में ये लोग रात्रि पिकनिक मनाते हैं |

     जागरों के आयोजन तथा पूजा में अथाह धन फूंकने के बाद भी संकट का निवारण नहीं होता तो पुन: जागर आयोजन किया जाता है जिसमें डंगरिया दो टूक शब्दों में कहता है, “तुम्हारे भाग्य का दुःख है भोगना ही पड़ेगा ।” एक लम्बे अंतराल तथा धन की बरबादी के बाद डंगरिये के ये शब्द सुनकर निराशा ही हाथ लगती है | कई बार तो उस रोगी की मृत्यु भी हो जाती है जिसके ठीक होने के लिए जागरों का आयोजन किया जाता है |

     उत्तराखंड में लोक विश्वास का रूप लिए हुए यह अंधविश्वास अपनी जड़ जमाये हुए है जिसका शिकार महिलाएं तथा गरीब ही अधिक होते हैं | अशिक्षा और अन्धविश्वास की क्यारी में उपजी यह प्रथा विरोध करने वालों को नास्तिक कहने में देर नहीं करती | कई जागरों और पूजा के पश्चात वांच्छित परिणाम नहीं मिलने का कारण डंगरियों से पूछना उन्हें ललकारने जैसा है | ऐसा जोखिम यहां कोई उठाने को तैयार नहीं | लकीर के फ़कीर बन कर सब मूक दर्शक बने रहते हैं | डंगरियों का डर समाज में इस तरह घर कर गया है कि लोग इनकी खुलकर भर्त्सना भी नहीं कर सकते | लोग सोचते हैं यदि इनसे तर्क करेंगे तो कहीं ये कुछ उलटा-पुल्टा न कर दें | अधिकांश डंगरिये- जगरिये निरक्षर या कम पढ़े लिखे होते हैं | ये भ्रम और अन्धविश्वास फैलाने में दक्ष होते हैं | सबसे बड़ी विडम्बना तो यह है कि शिक्षित समाज भी इन्हें देखकर  मसमसाते अवश्य रहता है परन्तु खुलकर विरोध नहीं करता |

     अच्छा तो यह होता कि लोग रोगी को चिकित्सक या वैद्य के पास ले जाते | कैसी भी जटिल समस्या क्यों न हो उससे जूझने के लिए स्वयं को तैयार करते, असफलता से पुनः लड़ते, साहस- धैर्य- बुद्धि से समस्या का समाधान ढूंढते, भाग्य के भरोसे न बैठकर परिश्रम करते, स्वयं में बदलाव लाते, क्रोध- अव्यवहारिकता- स्वार्थ तथा चमत्कार की आशा को त्यागकर सहिष्णु, आशावादी, व्यवहारिक, निःस्वार्थी तथा कर्म में विश्वास करने वाले बनते | साथ ही इस सत्य को भी समझते कि दुःख- सुख एक दूसरे से जुड़े रहते हैं |अंत में एक बात और- जागर समर्थक समाज में ज्ञान वर्धक एवं कर्म की ओर अग्रसर करने वाले आयोजनों का कोई अर्थ नहीं होता | यदि गांव में रामलीला, भगवत प्रवचन, कोई सांस्कृतिक समारोह, देशप्रेम की बात तथा जागर अलग- अलग स्थानों में एक ही रात्रि या दिन में आयोजित हो रहे हों तो सबसे अधिक उपस्थिति या भीड़ जागर में ही होती है | शिक्षा और कर्म के खरल में सफलता की बूटी हमें स्वयं तैयार करनी होगी |

          इस वेदना की कथा अनंत है | “पढ़े लिखे अंधविश्वासी बन गए लेकर डिग्री ढेर/ अन्धविश्वास के मकड़जाल में फसते न लगती देर/, पण्डे ओझा गुणी तांत्रिक बन गए भगवान्/ आँख मूंद विश्वास करे जग त्याग तथ्य विज्ञान |”

पूरन चन्द्र कांडपाल
08.08.2021

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