खरी खरी-911 : फेसबुक- व्हाट्सेप के नाम
फेसबुक -वॉट्सएप रंगीन देखा,
इन्द्रधनुष से बढ़ कर देखा |
कभी ‘वाह-वाह’ कभी ‘जय-जय’
व्यर्थ तारीफ़ शब्द लय -लय,
जिस न झुकाया सिर घर- मंदिर
वह देवी- देवता भेजते देखा |
कट-पेस्ट के लम्बे थान देखे
घूम- फिर कर वही ज्ञान देखे
छोटा ज्ञान पल्ले नहीं पड़ता
लम्बा ज्ञान बरसते देखा |
मस्ती देखी चैटिंग देखी
अन्धविश्वास के सैटिंग देखी
नाम बदल कर कई ग्रुप में
झूठा प्रोफाइल बहते देखा |
शराब गुटखा नशा धूम्रपान
मध्यम गति से लेते जान
हमने पार्क में बाल -बाला को
व्हाट्सेप नशे पर मरते देखा |
राजनीति को ढलते देखा
झूठनीति को फलते देखा
राजनीति कोई कहीं कर रहा
यहां कईयों को लड़ते देखा |
जिसको अपने मोबाइल में
जब भार्या ने हंसते देखा
क्रोध यों मडराया तिय पर
शब्द शोला बरसते देखा |
प्यार की आह भी भरते देखे
व्यंग्य बाण भी चलते देखे,
दूसरों की लेख -कविता पर
नाम अपना चस्पाते देखा |
चुटकुलों की बौछार भी देखी
बदलती बयार भी देखी,
पति-पत्नी एक दूजे के पूरक
पति को हरदम दबते देखा |
कभी किसी को जुड़ते देखा
कभी किसी को कुड़ते देखा
कभी तंज- भिड़ंत भी देखी
व्यर्थ बहस उकसाते देखा |
रात रात भर जगते देखा
घंटों वक्त गंवाते देखा
स्पोंडिलाइटिस कई लोगों को
मोबाइल से होते देखा |
चलते-चलते पढ़ते देखा
सैल्फी खीचते गिरते देखा
अश्लीलता का खुलकर तांडव
बदनाम मोबाइल होते देखा |
ऊंट –गधे के सुर में सुर
रखते जाते खुर में खुर
नहीं थी सूरत नहीं था सुर
झूठी प्रशंसा करते देखा |
कुछ शब्दों की धार भी देखी
शब्द पिरोती हार भी देखी
मान-मर्यादा के पथिकों को
राह गरिमा की चलते देखा |
कोरोना संक्रमण आते देखा
कई लोगों को मरते देखा,
ढीठ नहीं रखे कभी देह दूरी
बिना मास्क के घूमते देखा ।
क्या वे उस पथ चलते होंगे ?
जिस पथ चल- चल कहते होंगे !
ज्ञान बघारने वाले जन की
कथनी- करनी में अंतर देखा |
फेसबुक -वॉट्सएप रंगीन देखा
इन्द्रधनुष से बढ़ कर देखा |
पूरन चन्द्र काण्डपाल
27.08.2021
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