Thursday 19 August 2021

Gvel jyu : ग्वेल ज्यू

बिरखांत- 395 : ग्वेल/ गोरिया /गोलु ज्यु, एक न्यायप्रिय राजा

      देवभूमि उत्तराखंड में ग्वेल/ गोलु/ गोरिल/ गोरिया/ दूदाधारी आदि नाम से जिस देव की पूजा होती है आज की बिरखांत उन लोगों को समर्पित है जो इस देवता में श्रद्धा रखते हैं | भगवान् तो निराकार है, उसे न किसी ने देखा है और न कोई उससे मिला है | फिर भी जब हम व्याकुल होते हैं तो उसे याद करते हैं | कुछ लोग मनुष्य रूप में आकर अपने कर्म से इतने लोकप्रिय हो जाते हैं कि लोग उन्हें देव तुल्य मानते हैं | ऐसे ही एक देवता गोलु भी हैं जिनके उत्तराखंड में कई मंदिर हैं | जगरियों (दास ) के मुख से सुनी गाथा और कुछ ऐतिहासिक स्रोतों के अनुसार गोलु देवता जो उस क्षेत्र के रक्षक माने जाते हैं, इसकी काव्य गाथा मैंने अपनी पुस्तक “उकाव-होराव” (2008) में लिखी है जिसकी कहानी कुछ इस तरह है –

     उत्तराखंड में कत्यूरी शासन काल ईसा पूर्व 2500 से 700 ई. तक लगभग 3200 वर्ष रहा | इस शासन में सूर्यवंशी- चक्रवर्ती राजा हुए जिनका विस्तृत राज्य था | गोलु ज्यु भी कत्यूरी वंश के राजा थे | उनके परदादा तिलराई, दादा हालराई और पिता झालराई थे | गढ़ी चम्पावती -धूमाकोट मंडल इस क्षेत्र का केंद्र था | झालराई के सात विवाह करने पर भी संतान नहीं हुई | आठवीं शादी कालिंका से हुई जिसे पंचनाम देवों की बहन बताया जाता है | कालिंका के गर्भ में गोलु के आते ही सातों सौत ईर्ष्या करने लगी | उन्होंने प्रसव होते ही एक संदूक में गोलु को बहा दिया और प्रसव में ‘सिल- बट्टा’ पैदा हुआ बता दिया’ | संदूक गोरिया घाट पर एक धेवर ने बाहर निकाल कर बालक को बचाया और नाम रखा गोरिया |

     जब बालक बड़ा हुआ तो एक दिन झालराई –कालिंका ने गोलु के  सपने में आकर पूरी कहानी के साथ बताया कि वे उनके बेटे हैं | कहानी सुनते ही गोलु एक चमत्कारिक काठ के घोड़े में बैठ कर राणीघाट पहुंचे जहां सात सौत नहाने आई थी | उन्होंने सौतों को पानी में जाने से रोकते हुए कहा, “पहले मेरा घोड़ा पानी पीएगा |” सौतों ने कहा, “काठ का घोड़ा पानी कैसे पीएगा ?” जबाब, “वैसे ही पीएगा जैसे कालिंका ने ‘सिल-बट्टे’ को जन्म दिया था |” सौतों को अपनी करतूत याद आ गयी | गोलु ज्यु सौतों को राजा के पास ले गए और पूरी कहानी बताई तो कालिंका के स्तनों से दूध की धार बहने लगी | तब गोलु ज्यु का नाम दूदाधारी पड़ गया |  राजा ने सौतों को मौत की सजा सुनाई जिसे गोलु ज्यु ने ‘देश निकाले’ में बदलवा दिया |

     जब गोलु ज्यु राजा बने तो वे प्रजा के दुःख दूर करने में लग गए | उन्होंने भ्रष्टाचार, अन्याय, गरीबी और अराजकता दूर की | वे जन हित के लिए सफ़ेद घोड़े में बैठ कर जनता के बीच जाते और सब को न्याय दिलाते | वे एक प्रजापालक और न्यायविद के रूप में बहुत लोकप्रिय हुए जिस कारण लोग उनकी पूजा करने लगे | वे प्रजा के भलाई के लिए शिविर लगाते थे | जिला नैनीताल के घोड़ाखाल नामक स्थान पर वे एक दिन घोड़े सहित जल में विलीन हो गए |

      गोलु ज्यु ने जहां –जहां भी न्याय शिविर लगाए वहाँ आज भी गोलु देवता के मंदिर हैं जिनमें आज भी लोग अन्याय के विरुद्ध फ़रियाद करते हैं | उदाहरण के लिए अल्मोड़ा (चितइ), रानीखेत (ताड़ीखेत), नैनीताल (घोड़ाखाल) सहित कई जगह उनके मंदिर हैं जहां कई फरियादी जाते हैं | इनकी फ़रियाद से बेईमान या अन्यायी पर मनोवैज्ञानिक दबाव पड़ता है जिससे वह सुधरने का प्रयास करता है |

       ग्रामीण आँचल में स्थानीय देवों के ही बहुत थान-मंदिर हैं जिनकी पूजा में जगरिये -डंगरिये अंधविश्वास का जमकर तड़का ( जिसमें पशु बलि भी है ) लगा कर सुरा- शिकार की जुगलबन्दी का लुत्फ़ उठा रहे हैं | श्रद्धा होना अच्छी बात है परन्तु अन्धश्रधा ठीक नहीं हैं | किसी आम व्यक्ति में अमुक देव का अवतार होना या नाचना एक भ्रम है क्योंकि इनके कथन में कोई जिम्मेदारी नहीं होती | कई विदुजन और शोध कर्ता इन डंगरियों को देव नर्तक कहते हैं । वांच्छित परिणाम नहीं मिलने पर ये लोग भाग्य या कर्मरेख या कर्मगति कह कर पल्ला झाड़ लेते हैं | कहीं पर तीर- तुक्का लग जाता है | अत: भगवान की पूजा एक निराकार की तरह होनी चाहिए तथा किसी के झांसे में किसी चमत्कार की उम्मीद नहीं करनी चाहिए |  श्रीकृष्ण का कर्म संदेश हमें स्मरण करना चाहिए |

         हवन करने से बारिश नहीं होती | बारिश तो पेड़ लगाने से होती है जिसकी चर्चा धार्मिक आयोजन में होनी चाहिए।  अगर हवन से बारिश होती तो देश में कहीं भी फसल चौपट नहीं होती और न रेगिस्तान बनते | हवन गृह - वातावरण शुद्धि में प्रतीक के तौर पर होना अच्छी बात है । डंगरियों ने अपनी करामात देशहित में दिखानी चाहिए और उग्रवाद पर चुनौती के साथ नियंत्रण करना चाहिए जो आए दिन हमारे सुरक्षाकर्मियों पर गोली चला रहे हैं, उन्हें शहीद कर रहे हैं  | बभूत का एक फुक्का इन डंगरियों-जगरियों और तांत्रिकों ने उस कपटी दुश्मन पर क्यों नहीं मारा ? वर्तमान में उत्तराखंड सहित पूरा देश (विश्व भी) कोरोना संक्रमण से ग्रसित है । इस त्रास में भी किसी ने कोई चमत्कार नहीं किया । अतः भगवान ग्वेल ज्यू कि पूजा हमें स्वयं आत्मसंतुष्टि के लिए करनी चाहिए जैसे हम अन्य देवी/देवताओं की करते हैं । मुझे आज तक श्री राम, परशुराम, सीता, द्रौपदी या कृष्ण का डंगरिया भी नहीं मिला जिनकी हम पूजा करते आ रहे हैं या जिन्हें हम अपना आदर्श मानते आ रहे हैं और मानते रहेंगे । शिक्षा के दीप से अंधविश्वास अवश्य भागेगा।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
20.08.2021

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