खरी खरी - 888 : व्यथित पर्यावरण
सुना है उत्तराखंड में आल वेदर रोड बन रही है जिससे पहाड़ों से अंधाधुंध छेड़छाड़ हो रही है । पहाड़ों को चीरने का नतीजा हम प्रति दिन देख रहे हैं । देश के सभी भू - भाग में कहीं न कहीं विकास के नाम पर जंगलों का कटान हो रहा है। इससे हमारा पर्यावरण बहुत व्यथित होकर अपनी वेदना इस तरह प्रकट कर रहा है-
कर प्रदूषित मेरा तन
तू कहां टिक पाएगा,
संभल जा मानव तेरा
अस्तित्व ही मिट जाएगा,
बर्बादी वह है तेरी
जिसे तरक्की कह रहा,
पर्यावरण की पर्त पर
कहर तू बरपा रहा ।
तूने मेरे पर्वतों को
खोद कर झुका दिया,
बर्फीली चोटियों को
हीन हिम से कर दिया,
दिनोदिन मेरे शिखर का
रूप बिखरने है लगा,
निहारने निराली छटा
जन तरसने है लगा ।
बन के दानव जंगलों को
रौंदता तू जा रहा,
फटती छाती को तू मेरी
कौंधता ही आ रहा,
काट वैन-कानन को तू
कंकरीट वैन बना रहा,
उखाड़ उपवनों को मेरे
ईंट तरु लगा रहा ।
चीर कर तूने मेरा
रंग हरित उड़ा दिया
कर अगिनत घाव तन पर
श्रृंगार है छुड़ा दिया ,
तरुस्थल को मेरे तूने
मरुस्थल बना दिया,
जल-जमीन-जंगल खजाना
सारा दोहन कर लिया ।
चाहता मानव के पग
बढ़ते रहे जहान में,
रुपहली धरा नहीं
बदले कभी वीरान में,
पर्यावरण की पर्त को
संभाल उठ तू जागकर,
सोच और तू जा ठहर
बढ़ न सीमा लांघ कर ।
चाहता तू जी सके
इस धरा में अमन चैन से,
वृक्ष बंधु मान ले
लगा ले अपने नैन से,
कोटि पुण्य पा जाएगा
एक वृक्ष के जमाव से,
स्वच्छ पर्यावरण में फिर
जी सकेगा चाव से ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
12.07.2021
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