बिरखांत- 380 : शराबी बरेतिए
कुछ बातें कहने -बताने, सुनने-सुनाने की होती हैं जो हमें गिच खोलने पर मजबूर करती हैं और साथ ही सबसे मंथन करने को कहती हैं | हमारी अच्छी-बुरी हरकतों को बच्चे देखते हैं फिर अनुकरण करते हैं | आज प्रस्तुत है एक छोटी सी बिरखांत -
कुछ वर्ष पहले मैं गांव (उत्तराखंड) में एक बरात में गया | मैंने अपने झोले में पजामे के साथ टार्च लपेट रखी थी | लोगों ने सोचा ‘बापसैप दिल्ली बै ऐ रईं, बोतल हुनलि ‘ | जब सच्चाई का उन्हें पता चला तो वे कहने लगे “एक नंबर का कंजूस है ये | इसके साथ मत जाओ | ये भाषण देकर मूड खराब कर देगा |” दुल्हन के आंगन पहुंचने तक केवल दुल्हा, कुछ बच्चे और मैं दारू के दाग से दूर थे, बाकी बरात शराब में डूब चुकी थी | शराबी बरेतियों ने उस गाँव में जो नाम कमाया उसकी बिरखांत बताने लायक नहीं है क्योंकि वह बहुत ही अमर्यादित, अशोभनीय और अनर्गल है | कएक बार झगड़े के बादल उठे और जैसे-तैसे उन बादलों को बरसने से रोका | ज्वात लागा लाग इज्जत रै गेइ |
शराब से दूर रहने पर यदि आपको कोई कंजूस कहे तो यह आपका सम्मान है, ऐसा मैं सोचता हूं | एक न एक दिन, कभी न कभी प्रत्येक शराब सेवनकर्ता, शराब को बुरी चीज बताएगा | फिर उस दिन का इन्तजार क्यों ? आज ही, अभी से शराब को ‘ना’ कहो और उन पंडितों, मास्टरों (अध्यापकों), विद्यार्थियों, रिश्तेदारों, डंगरियों, जगरियों, रस्यारों, गिदारों, नेताओं, बाबुओं, बाबाओं, अफसरों, हेल्परों, डराइवरों, क्लीनरों, कवि- लेखक- साहित्यकारों आदि पूरी जमात की पोल खोलो जो कभी सरेआम तो कभी लुका- छिपा कर शराब गटक रहे हैं | बिरखांत लामि नि करन | निरबू रज कि कथै- कांथ |
पूरन चन्द्र कांडपाल
08.07.2021
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