खरी खरी - 886 : श्रृद्धा भी, अपमान भी
" कुछ लोग भगवान को मानते हैं और कुछ नहीं मानते | जो मानते हैं उनसे तो मैं (भगवान) अपनी बात कह ही सकता हूं | आप ही कहते हो कि कहने से दुःख हलका होता है | आप अक्सर मुझ से अपना दुःख-सुख कहते हो तो मेरा दुःख भी तो आप ही सुनोगे | आपके द्वारा की गयी मेरी प्रशंसा, खरी-खोटी या लांछन सब मैं सुनते रहता हूं और अदृश्य होकर आपको देखे रहता हूं | आपकी मन्नतें भी सुनता हूं और आपके कर्म एवं प्रयास भी देखता हूं | कुछ लोग मेरे छोटे छोटे चित्र या मॉडल या फोटो फ्रेम बना कर अपने मित्रों को प्रसाद की तरह यह कहते हुए बांटते कि "मैं अमुक तीर्थ/ मंदिर / देवी गया था, लीजिए प्रसाद। " बाद में मेरी उस छोटी फोटो को भी किसी पेड़ के नीचे पटक देते हैं । यह सब मेरा अपमान है ।"
"आप कहते हो मेरे अनेक रूप हैं | मेरे इन रूपों को आप मूर्ति-रूप या चित्र -रूप देते हो | आपने अपने घर में भी मंदिर बनाकर मुझे जगह दे रखी है | वर्ष भर सुबह-शाम आप मेरी पूजा- आरती करते हो | धूप- दीप जलाते हो और माथा टेकते हो | दीपावली में आप मेरे बदले घर में नए भगवान ले आते हो और जिसे पूरे साल घर में पूजा उसे किसी वृक्ष के नीचे लावारिस बनाकर पटक देते हो या प्लास्टिक की थैली में बंद करके नदी, कुआं या नहर में डाल देते हो | वृक्ष के नीचे मेरी बड़ी दुर्दशा होती है | कभी बच्चे मुझ पर पत्थर मारने का खेल खेलते हैं तो कभी कुछ चौपाए मुझे चाटते हैं या गंदा करते हैं | "
"आप मेरे साथ ऐसा वर्ताव क्यों करते हैं ? अगर यही करना था तो आपने मुझे अपने मंदिर में रखकर पूजा ही क्यों ? अब मैं आपका पटका हुआ अपमानित भगवान आप से विनती करता हूं कि मेरे साथ ऐसा व्यवहार नहीं करें | जब भी आप मुझे अपने घर से विदा करना चाहो तो कृपया मेरे आकार को मिट्टी में बदल दें अर्थात मूर्ति को तोड़ कर चूरा बना दें और उस चूरे को आस-पास ही कहीं पार्क, खेत या बगीची में भू-विसर्जन कर दें अर्थात मिट्टी में दबा दें | जल विसर्जन में भी तो मैं मिट्टी में ही मिलूंगा | भू-विसर्जन करने से जल प्रदूषित होने से बच जाएगा | इसी तरह मेरे चित्रों को भी चूरा बनाकर भूमि में दबा दें | "
"मेरे कई रूपों के कई प्रकार के चित्र हर त्यौहार पर विशेषत: नवरात्री और रामलीला के दिनों में समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में भी छपते रहे हैं | रद्दी में पहुंचते ही इन अखबारों में जूते- चप्पल, मांस- मदिरा सहित सब कुछ लपेटा जाता है | मेरी इस दुर्गति पर भी सोचिए | मैं और किससे कहूं ? जब आप मुझ से अपना दर्द कहते हैं तो मैं भी तो आप ही से अपना दर्द कहूंगा | आप आंख बंद करके यह सब देखे रहते हैं। मेरी इस दुर्गति का विरोध क्यों नहीं होता, यह मैं आज तक नहीं समझ पाया ? मुझे उम्मीद है अब आप मेरी इस वेदना को समझेंगे और ठीक तरह से मेरा भू-विसर्जन करेंगे |"
"विगत मार्च 2020 से लगातार कोरोना रोग का दौर चल रहा है और यह अनिश्चित है कि कब तक चलेगा ? इस रोग में भी आप मुझे याद कर रहे हैं । मैं भी तभी आपको इस रोग से बचा पाऊंगा जब आप अपना बचाव खुद करेंगे अर्थात मास्क ठीक से पहनेंगे, देह दूरी का ध्यान रखेंगे, भीड़ में नहीं जाएंगे, जरूरी कार्य से ही बाहर जाएंगे, सेनिटाइजर का प्रयोग करेंगे, नियमित साबुन से हाथ धोते रहेंगे तथा वैक्सीन अवश्य लगाएंगे । निराश होने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि निराशा में कोई जी नहीं सकता। तू जिंदा है तो जिंदगी में जीत की यकीन कर। हारेगा कोरोना जरूर निडर होकर कर्म कर।"
पूरन चन्द्र काण्डपाल
09.07.2021
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