खरी खरी - 882 : इसे नशा कहें या शौक ?
आपके साथ कुछ न कुछ रोज साझा करना मेरा शौक बन गया है । मेरे शब्दों को आप झेलते हैं आपका हृदय से आभार । मेरा एक परिचित रोज शराब पीता है, पीकर मस्त रहता है और अपना काम भी करते रहता है । उसका परिवार उससे दुखी है । उसका शराब का मासिक खर्च 3000/- रुपये और वार्षिक बजट 36000/- रुपये है । मेरे अन्य कई परिचित इस धन को सार्थक कार्य पर लगाते हैं जैसे पत्नी को देते हैं, बच्चों पर खर्च करते हैं, भविष्य के लिए जमा करते हैं या किसी सुपात्र (सड़क किनारे श्रद्धा के नाम पर आलू- पूरी मुफ्त खाने की आदत नहीं डालते) को दान करते हैं । सुपात्र में NDRF भी आता है औऱ साइट शेवर भी आता है या कई अनाथालय भी इस श्रेणी में आते हैं ।
सबके अपने -अपने नशे या शौक हैं । कौन नशा अच्छा है यह हमें ही सोचना है । होश आने पर या होश में रह कर पीते हुए हर शराबी ने मुझे बताया , "सर, शराब बहुत बुरी चीज है, इससे बचना चाहिए । यह घर -परिवार- जिंदगी- सम्मान -समाज सबकुछ बर्बाद कर देती है ।" अंत में रोज पीने वालों से मेरी एक गुजारिश , "रोज पीने वालो ! जरा अपने लीवर (कलेजे) के बारे में भी सोचना । कुछ छेद होने तक तो वह आपका साथ देगा परंतु जब वह छलनी बन जायेगा तो फिर क्या होगा ?" और हां, जरा अपनी आंतों से भी पूछ लेना जिनकी अंदरूनी पर्त शराब से धीरे- धीरे निष्क्रीय होकर आपके पाचन तंत्र पर प्रभाव डालने लगी है ?
पूरन चन्द्र कांडपाल
05.07.2021
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