Tuesday 13 July 2021

Apraadh bodh :अपराध बोध

खरी खरी - 889 : अपराध बोध

एक बड़ा अपराध


फिर से कर लिया है,


कत्ल अपनी आत्मा का


सह    लिया    है ।

नजरों में लोगों की मैं


एक भला इंसान हूं,


कर्म ऐसा कर लिया है


जैसे मैं शैतान हूं ।

आंखें अपने आप से मैं


अब मिला सकता नहीं,


आत्मा झकझोरे मुझको


बोल कुछ सकता नहीं ।

हो गया अपराध जब


कंपकपाने मैं लगा,


जान जाए जग न सारा


सकपकाने मैं लगा ।

नहीं जानता क्यों मुझे वो


क्षमा यों ही कर गया,


निगाहों के आगे उसके


जीते जी मैं मर गया ।

विश्वसनीयता आज से वह


कैसे करेगा जगत पर,


विश्वास के क्षण पर उसे


आ जाऊंगा मैं ही नजर ।

बिना मांगे, मौन हो वो


क्षमा मुझे कर गया,


है उच्च क्षमा करने वाला


बात साबित कर गया ।

घृणा अपने आप से


हृदय मेरा अब कर रहा,


वो क्षमा मुझे कर गया


पर कर नहीं मैं पा रहा ।

प्रायश्चित अपराध का


करना जो चाहो तुम अभी,


पुनरावृति इस रोग की


होने न देना तुम कभी ।

(अपराध का वास्तव में बोध होने पर ऐसा होता है, यह महसूस करने की बात है । मेरे प्रथम हिंदी कविता संग्रह 'स्मृति -लहर' 2004 से उधृत)

पूरन चन्द्र काण्डपाल


14.07.2021


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