Friday 9 July 2021

Jhan diya lift : झन दिया लिफ्ट

खरी खरी - 887 : दिया या झन दिया लिफ्ट

टैम नि रैगोय आब
अनजान कि मदद करण,
जो देखूंरौ दया भाव
वीक है जांरौ मरण |

एक न्यूतम बै रात
दस बजी औं रौछी घर,
देर है गेछी मणि तेज
चलूं रौछी स्कूटर |

अचानक एक च्येलि ल म्यर
स्कूटर रोकणक लिजी हात दे,
रातक टैम स्यैणी जात देखि
मील स्कूटर रोकि दे |

गणगणानै कूंफैटी मीकैं
छोड़ि दियो अघिल तक,
बस नि आइ भौत देर बटि
चै रयूं एकटक |

अच्याल कि दुनिय देखि
मी पैली डर गोयूं,
वीकि डड़ाडड़ देखि
फिर मी तरसि गोयूं |

म्यर इशार पाते ही
उ म्यार पिछाड़ि भैगे,
स्कूटरम भैटते ही झट
वीकि सकल बदलि गे |

जसै मील स्कूटर अघिल बड़ा,
कूंण लागी रुपै निकाल,
नतर मि हल्ल करनू
मैंस आफी कराल त्यर हलाल |

के करछी आपणी इज्जत
बचूणक लिजी चणी रयूं
वील म्यार जेबम हात डावौ
मी चुप पड़ी रयूं |

एक्कै पचासक नौट
बचि रौछी उदिन म्यार पास
वील म्यार और जेब लै टटोईं,
उकैं के नि मिल हैगे उदास |

थ्वाड़ देर बाद उ म्यार
स्कूटरम बै उतरि गे
पचासक नौट ल्हिबेर
जाते-जाते मीकैं धमकै गे |

‘चुप रे हल्ल झन करिए,
त्येरि सांचि क्वे निमानाल,’
मि कूल य मिकैं पकड़ि ल्या,
सब म्यर यकीन कराल’ |

जनै-जनै उ मीकैं य
कहावत याद दिलैगे,
‘ज्वात लागा लाग,
आज इज्जत बचिगे’ |

उदिन बटि मी
भौत डरन है गोयूं,
लिफ्ट दिण क लिजी
कतरां फै गोयूं |

बचपन में पढी ‘बाबा
भारती’ कि कहानि याद ऐगे,
जो डाकु खड़क सिंह हूं
‘कहानि कैकं झन बतै’ कैगे |

पर मी मदद करणी
मनखियाँ कैं बतूंण चानू,
क्वे भल मानो या नक
सांचि बात कै जानू |

कैकं लै लिफ्ट
दिण में खत्र भौत छ,
‘आ बल्दा मीकैं मार’
जसि अचानक मौत छ |

तुमुकैं हिम्मत छ त लिफ्ट
दीण क जोखिम उठौ,
नतर अणदेखी करो,
चुपचाप आपण घर जौ |

पूरन चन्द्र कांडपाल
10.07.2021

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