Tuesday 27 July 2021

Bachchon mei berukhi : बच्चों में बेरूखी

खरी खरी - 896 : बच्चों में बढ़ती बेरुखी 


     अक्सर हम हर किसी के मुंह से सुनते हैं कि “बच्चों में  (विशेषतः किशोर-किशोरियों में ) बहुत बदलाव आ गया है | बच्चे हमारी नहीं सुनते, बच्चे बिगड़ गए हैं, अपने मन की करते हैं, टी वी मोबाइल में खो गए हैं, किसी परिचित को नमस्ते तक नहीं करते, आदि आदि | ये सभी बातें लगभग सत्य हैं | इस बीच कुछ पारिवारिक/ सामाजिक समारोहों में जाने का अवसर मिला जहां अधिकांश परिचित समूह था जिनमें बच्चे भी थे | कुछ को छोड़ कर अधिकांश ने इस तरह मुंह फेरा कि जैसे वे जानते हीं नहीं थे अर्थात जानकर भी अनजान बन गए | उनकी चुप्पी पर हम चुप नहीं रहे | जो बिलकुल सामने से गुजरा उससे पूछ ही लिया, “कैसे हो बेटा या बेटी ?” रूखा  सा जबाब (“ठीक हूं” ) देकर आगे बढ़ गए | अभिवादन करना शायद उन्होंने आवश्यक नहीं समझा | स्पष्ट था कि वे बोलना ही नहीं चाहते थे | इस तरह की बेरुखी आजकल अधिकांश बच्चों में देखी जा सकती है | यह बेरुखी एक बहुत बड़ी चिंता का विषय है अगर कोई इस बात को समझे तो |

     कुछ वर्ष पहले अमर शहीद चन्द्र शेखर आजाद के बलिदान दिवस पर एक कार्यक्रम में भी कुछ इसी उम्र के बच्चे देखे | यहां भी परिचित /अपरिचित बच्चे थे परन्तु व्यवहार बिलकुल भिन्न था | बच्चों में विनम्रता देखी, अभिवादन करने के संस्कार देखे और वह बहुत कुछ देखा जिससे निराशा के कुछ बादल छंट गए | इन्हें हमने सामाजिक जिम्मेदारी और प्रतिभागिता निभाते हुए भी देखा | यह एक दिन के लिए नहीं था बल्कि उन बच्चों में रच- बस गया था | उनमें बड़ों के प्रति विनम्र भाव था, शहीदों के प्रति श्रद्धा थी और स्वावलंबन- स्वाभिमान की चमक थी | ऐसे बच्चों को देख कर मन का प्रफुल्लित होना स्वाभाविक था |

      हमारे घरों में भी इसी उम्र के बच्चे हैं | यह तो आप /हम जानें कि वे कैसे हैं ? यदि वे मर्यादित हैं, अनुशासित और संस्कारित हैं, उनकी भाषा शिष्ट है, वे बड़ों से आदर अथवा विनम्रता से बोलते हैं, प्रात: जल्दी उठते हैं, पढ़ना- लिखना, खेलना- खाना सब समय और नियम से है, आपकी आज्ञा का पालन करते हैं, समाज- देश हित की बात को समझते हैं, सामाजिकता में उनके कदम बढ़ते हैं, त्यौहार या समारोहों में भागीदारी निभाते हैं, पर्यावरण और स्वच्छता प्रेमी हैं, अपनी वस्तुओं की कद्र करते हैं अथवा उन्हें संभाल कर रखते हैं, घरेलू काम में हाथ बटाते हैं, आज्ञा लेकर ही कहीं जाते हैं, अपने विद्यालय और अध्यापकों का आदर करते हैं तो आपके बच्चे सही दिशा में गतिमान हैं, उनका भविष्य उज्ज्वल है और वे अपने परिश्रम, लगन और हिम्मत से एक दिन अवश्य सफल होंगें तथा आपको अवश्य गौरवान्वित करेंगे | ( कोरोना काल में बच्चों की सामाजिकता बहुत कम हो गई क्योंकि स्कूल भी बंद हैं।)

     यदि उक्त गुणों की आपके बच्चों में कमी है तो यह जरूर चिंता का विषय है | आज ही से उनके लिए समय निकालिए और उन्हें इन गुणों से विभूषित करिए क्योंकि ये बाजार से खरीद कर नहीं दिए जा सकते |धन होने पर भी बाजार से संस्कृति, सदाचार, सभ्यता, ज्ञान, खुशी, मुस्कान, भूख, नींद और भगवान नहीं खरीदे जा सकते क्योंकि ये सब बाजार में नहीं मिलते । इनकी आपूर्ति अभिभावकों को ही करनी होती है । 

पूरन चन्द्र काण्डपाल 
 28.07.2021

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