दिल्ली बै चिठ्ठी ऐ रै
भाग्य और भगवान
चनरदा ल बता "म्यार कुछ मितुर ‘भाग्य और भगवान्’ पर लै गिच खोलण कि बात करैं रईं | हम हर साल श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनूनू | भौत कम लोगों ल कृष्ण क उ अमर सन्देश “कर्म करते जौ और फल कि इच्छा नि करो" कि चर्चा करी जबकि चर्चा य त्यौहार पर कर्म कि हुण चैंछी | हाम जब चारों तरफ देखनू तो सबूंक अलग- अलग भगवान देखण में औनी | ज्यादैतर आसपास कै भगवान् कि ऊँ पुज करनी, जबकि राम-कृष्ण पछिन रै जानी |
हम नै राम -कृष्ण की मर्यादा पर चलें राय और नै उनरि शिक्षा पर | हम भाग्य और भगवान कैं दोष दीण में हमेशा अघिल रौनू | बात-बात में ‘अरे यार भगवान् ल यसै लेखि दे, भाग्य में यसै लेखी छी' कौण ठीक न्हैति | सिर्फ द्वि बातों क लिजी भगवान् क स्मरण ठीक छ | पैलि बात छ - हमुकें ज्ये कुछ लै मिलि रौछ या हमूल आपणी मेहनत ल ज्ये लै पा उ सब ‘वील’ देछ, मानि बेर चलण चैंछ |यस मानि बेर हम खुद श्रेय नि ल्ही बेर अहंकार (ईगो) ल बचुल |
दुसरि बात छ - हमूल भगवान् हुणी दुःख, परेशानी और विवशता कैं सहन करण कि शक्ति (ताकत) मांगण चैंछ ताकि हाम उ दौर कैं झेलि बेर उबर सकूं | धन-दौलत, सुख-ऐश-आराम कि मांग करण, मन्नत मांगण , आपणी गलती क लिजी भाग्य -भगवान पर दोष लगूण, ‘उकें’ यई मंजूर छी’ कूण, य सब अनुचित छ | पाणी में डुबकि लगै बेर नै पुण्य मिलल और नै पाप कटल | पुण्य त परोपकार और राष्ट्र प्रेम करि बेरै मिलल, काबा-कैलाश या तीरथ जै बेर नि मिला |
स्वर्ग या तीन लोक क भैम लै छोड़ि दियो | अगर यूं हुना तो ‘अंकल शैम’ (अमरिका) वां कबै पुजि जान | पाप तबै कटल जब वीक सही प्रायश्चित ह्वल, दिल ल माफि मांगी जो और उकें दोहराई नि जो | बेकार क आडम्बर, दिखाव और अंधविश्वास क च्वव /लबादा ओड़ि बेर मन-वचन-कर्म ल प्रत्यक्ष या परोक्ष हिंसा करनै अघिल बढ़ण लै भौत ठुल पाप छ | कुछ लोगों कैं य बात भलि नि लागा पर कौण पड़ल कि ‘भाग्य और भगवान्’ कैं दोष दी बेर हाम हमेशा आपण बचाव में छतरी खोलनू | भगवान एक अदृश्य शक्ति छ जैकैं नै कैल देख और नै कै दगै ‘उ’ मिल |
टैम काटण या दुकान चलूंण क लिजी भलेही क्वे कतुक्वे मिठि बात करि ल्यो, दिल-बहलूण क लिजी कतुक्वे मनगणत कांथ- किस्स कैल्यो पर वास्तविकता य ई छ | श्रधा हो पर अन्धश्रधा नि हो | श्रधा क पिछाड़ि तर्क हो कुतर्क नि हो, विवेक –विज्ञान हो अज्ञान नि हो | यूं सब बात मी मात्र दोहरूं रयूं | विवेकशील-विद्वान् लोगों ल यूं सब बात पैलिकै कै रैईं |
पूरन चन्द्र काण्डपाल,
01.03.2018
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