Wednesday 14 March 2018

Bachon par najar : बच्चों पर नजर जरूरी

बिरखांत - 203 : बच्चों पर नजर जरूरी

      आजकल हमारे इर्द-गिर्द एक अटपटा-अनसुना विदेशी भाषा का शब्द गूंज रहा है –‘पोर्न’ |  ये पोर्न क्या है ? वर्ष 1985  में प्रशिक्षण के लिए एक संस्थान में बीकानेर गया था | वहां सहकर्मियों ने पूछा, “क्या तुमने ब्लू फिल्म देखी है ?” मैंने कहा “नहीं” | मैंने ब्लैक-ह्वाइट, ईस्टमैन, फ्यूजीयामा, गेवा कलर की फिल्में तो देखी थी पर ‘ब्लू फिल्म’ नहीं | मैं सोचता था यह कोई विशेष कलर होता होगा | बाद में उनके बताने पर पता चला कि मैं दुनिया से कितना पीछे हूं |

     दुनिया से पीछे तो मैं आज भी हूं | आज मोबाइल-इंटरनेट का दौर है | बच्चे भी इस भंवर में घुस चुके हैं और बिना घुसे वे दुनिया के साथ दौड़ भी नहीं सकते | एक दिन सायंकाल छै-सात परिचित लड़कों (15- 16 वर्ष उम्र) का एक समूह एक खड़ी मोटरसाइकिल पर बड़ी तल्लीनता से एक बड़े मोबाइल पर कुछ दृश्य देख रहे थे | मेरे आते ही वे चल पड़े | एक छोटे बच्चे ने बड़ी मासूमियत से बताया “अंकल ये पोर्न देख रहे थे” | मैंने पूछा, “ये पोर्न क्या होता है ?”

     कक्षा 7 के इस बच्चे ने मुझे वह सब कुछ बेझिझक बता दिया जिसे मैं यहां लिख नहीं सकता | एक राष्ट्रीय दैनिक में डा. कुमुदिनी पति के एक लेख के अनुसार, चार सौ लकड़ों में से 70% ने बताया कि वे दस वर्ष की उम्र से ‘पोर्न’ देखने लगे थे और 93% ने कहा कि पोर्न की लत नशीली दवाओं की तरह है |  कुछ वर्ष पहले एक जनहित याचिका में सर्वोच्च न्यायालय ने इस पर चिंता जताई और सरकार ने 857 वेवसाईटो को बंद करने का निर्देश दिया | शीघ्र ही कुछ लोग इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश बताने लगे | 

     आज हमारी मीडिया में ‘ऐड’ आता है ‘मसालेदार चटपटी बातें लड़की से करें’ | नेटवर्क वाले खूब कमाई कर रहे हैं परन्तु बच्चे और युवा बरबाद हो रहे हैं | हमने अपने बच्चों को नेट- मोबाइल- डोंगल सब कुछ दे दिया है | बच्चे अकेले में क्या देख रहे हैं ? क्या ‘सैंड’ कर रहे हैं ? कहां से ‘रिचार्ज’ का पैसा आ रहा है ? इन सवालों के जवाब अभिभावकों के पास नहीं है |

     बस सभी से इतनी सी अपील है कि बच्चों पर नजर रखें, अठारह वर्ष से छोटे बच्चों को मोबाइल (मजबूरी के सिवाय) नहीं दें, घर के कंप्यूटर पर बच्चों को अपने सामने बैठाएं, कम्प्यूटर कक्ष का दरवाजा खुला रखें | बच्चों के दोस्तों को भी पहचानें | उनकी बातचीत, हरकत, शिष्टाचार और पढाई के गिरते स्तर पर भी नजर रखें | खेलने के बहाने प्रतिदिन वह कितने घंटे घर से बाहर रहता है और रात को कितनी देर में घर आता है इस बात को जरूर नोट करें | समय रहते सजग रहें | हमारी सजगता अपनी अगली पीढ़ी को बरबादी से बचा सकती है | ‘का वर्षा जब कृषी सुखाने’ |

पूरन चन्द्र काण्डपाल
15.03.2018

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