Sunday 7 January 2018

Mere shikshak : मेरे शिक्षक

मीठी मीठी - 64 : मेरे शिक्षक

कर्मठ, सात्विक, मेहनतकश
दंड अनुशासन थामे हुए,
अग्रसर निःस्वार्थ पथिक यह
ध्वज शिक्षा का लिए हुए ।

नीर नदी का जग की जैसे
तृप्त प्यास कर जाता है,
अविरल ज्ञान की धार बहा
सिंचित जग को कर जाता है ।

प्रज्वलित कर सरस्वती दीप वह
निसि वासर हरता तम को
शिक्षा के अथाह जलधि का
परिचय देता है सबको ।

मूल्य चुका नहीं कोई सका है
गुरु प्रदत ज्ञान का अब तक,
गुरु स्वतः दक्षिणा पा जाता
शिष्य चले जो सतमारग ।

नाशवान इस सकल सृष्टि में
रहता अमर गुरु का नाम,
नतमस्तक मैं चरण धूलि पर
करता तुमको कोटि प्रणाम ।

( कलम-कमेट-तख्ती से लेकर आज तक शिक्षा देने वाले शिक्षकों को सादर समर्पित । )

पूरन चन्द्र काण्डपाल
08.01.2018

No comments:

Post a Comment