खरी खरी -76 : कालबुर्गी, दाभोलकर, पंसारे
कुछ महीने पहले देश ने लालकीले से एक आवाज सुनी थी कि अब हम ‘सपेंरों का देश’ नहीं हैं, फिर ये हत्यारे कौन हैं जो हमें फिर ‘सपेरों का देश’ बना रहे हैं ? ३० अगस्त २०१५ को बंगलुरु में ७७ वर्षीय कन्नड़ विद्वान् लेखक और प्रगतीशील विचारक एम् एम् कालबुर्गी को कुछ लोगों ने उनके घर में गोली मार दी | कालबुर्गी, नरेंदर दाभोलकर और गोविन्द पंसारे के बाद तीसरे व्यक्ति हैं जो अंधविश्वास के विरोध में बोलते-लिखते थे और मार दिए गए |
103 पुस्तकों के लेखक प्रोफ़ेसर कालबुर्गी लोगों में मुर्दा शान्ति हटाकर तड़प पैदा करने, राष्ट्र प्रेम करने और अंधविश्वास का विरोध करने का प्रयास करते थे | हमलावरों का अगला शिकार कौन होगा, यह कह नहीं सकते परन्तु यह अटूट सत्य है कि विचार मरता नहीं है, विचार ज़िंदा रहता है | मसमसाने से कुछ नहीं होगा | मुंह खोलें, अंधविश्वास का विरोध करें | यही कालबुर्गी, दाभोलकर और पंसारे को सच्ची श्रधांजलि होगी |
पूरन चन्द्र काण्डपाल
02.09.2017
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