Friday 29 September 2017

Vyathit kalamkaar : व्यथित कलमकार

व्यथित कलमकार 

     साहित्यकारों क बार में अनाप-सनाप बलाण पर व्यथित चनरदा कूं रईं, “साहित्यकार हमेशा आपण विचारों कैं आपणी कलम ल आखर क रूप दिनी | उं साहित्य-धर्म क दगाड़ राष्ट्र- धर्म लै निभूनै सोचि-समझि बेर कलम चलूनी | य सांचि बात छ कि हरेक  साहित्यकार क क्वे लै मुदद कैं देखण –परखण क आपण नजरिया हुंछ |  

     हमार प्रजातंत्र कि खूबी छ कि यमै पक्ष और विपक्ष कि आपणी भूमिका हिंछ | जब कभै क्वे दल विशेष कैं क्वे   कलमकार कि बात भलि नि लागनी तो उं कलमकारों पर आपणी मन:स्थिति क अनुसार ठप्प लगै द्युछ | हालों में लेखकों द्वारा सम्मान लौटूण क सिलसिल चलौ |  करीब तीन दर्जन है ज्यादै लेखकों ल भौत दुःख और वेदना क साथ आपण पुरस्कार लौटूण कि घोषणा लै करी  | पांच लेखकों ल साहित्य अकादमी बै आपण आधिकारिक पदों है इस्तिफ लै दे| 

     यौसब क्यलै हूंरौ ? पिछाड़ि कुछ महैंण में तीन विद्वान् लेखकों – नरेंदर दाभोलकर, गोविन्द पंसारे,एम् एम् कलबुर्गी और गौरी लंकेश कि अज्ञात लोगों ल ह्त्या कर दि जैल साहित्य जगत में  घुप्प अन्यार महसूस करीगो | यूं लेखक सामाजिक सौहार्द कि मजबूती क लिजी ल्यखनै अंधविश्वास क विरोध करछी | इनूल अभिव्यक्ति कि स्वतन्त्रता कि सीमा में रै बेर राष्ट्र हित में लेखौ | कुछ लोगों कैं य भल नि लाग और इनर कतल करवै दे | 

       आज समाज में असहनशीलता भौत बड़िगे | उलजलूल-उटपटांग  भाषणों ल समाज में विष-वमन करी जांरौ, धर्म के नाम पर असहिष्णुता फैलाई जा रै जैल देश की गंगा-जमुनी संस्कृति क खून हूं रौ | ये वजैल देश में निराशा त फैलें रै विदेश में लै देश कि छवि पर धूव बैठें रै | देश में आपसी भैचार बनी रौ, वातावरण शांत रौ, अमन-चैन रौ, अविश्वास-असहनशीलता नि फैलो, य ई त लेखक चानी | जब लेखक कैं विषमता –विसंगति –असहिष्णुता देखींछ तो उ कलम की बदौलत मिलि सम्मान कैं जेब में धरि बेर चैन ल नि बैठि सकन | 

       जो लै साहित्यकार ल आज कि हालत कैं देखि बेर विरोध स्वरुप सम्मान लौटै बेर आपणी व्यथा-वेदना प्रकट करी उकैं अनुचित नि कई जै सकन | सम्मान लौटूण दुख प्रकट करण जसि बात हइ | हाला क दिनों में जो देश में घटना घटैं रईं अगर शासन चलूणी जिम्मेदार लोगों द्वारा यै पर शुरू में चर्चा है जानी तो य हालत नि हुनि | आब जे लै साहित्यकारों क लिजी कई जां रौ उमें लै आदर की भाषा का अभाव छ | 

     साहित्यकार क्वे दल विशेष क नि हुन | उ देश क हित में लेखूं |  सबूं हैं य उम्मीद करी जैंछ कि ऊँ लेखक पर कैक पक्ष ल्हींण क ठप्प नि लगूंण | साहित्य धर्म निभाते हुए देश हित में लेखणी कलमकारों क लिजी अनादर वालि भाषा क प्रयोग भौत अनुचित छ | हमरि संस्कृति में बहुलता छ, यैक लै ख्याल हुण चैंछ |”

पूरन चन्द्र काण्डपाल
29.09.2017

 

 

 

No comments:

Post a Comment