Monday 25 September 2017

Doha saptak : दोहा सप्तक कुमाउनी

खरी खरी - 93 : दोहा सप्तक (कुमाउनी)

कविता मनकि बात बतै दीं,
कसै उठी हो उमाव |
बाट भुलियाँ कैं बाट बतै दीं,
ढिकाव जाई कैं निसाव||

द्वि आखंर हंसि बेर बलौ,
बरसौ अमृत धार |
गुस्स्म निकई कडू आंखर,
मन में लगूनी खार ||

लालच  जलंग  पाखण्ड  झुटि,
   राग -द्वेष  अंहकार  |
अंधविश्वास अज्ञान भैम,
डुबै दिनी मजधार ||

तमाकु सुड़ति शराब नश,
गुट्क खनि धूम्रपान |
चुसनी माठु-माठ ल्वे हमर,
बेमौत ल्ही लिनी ज्यान ||

धरो याद इज बौज्यू कैं,
शिक्षक सिपाइ शहीद |
दुखै घड़िम ल्हे भुलिया झन,
धरम करम उम्मीद ||

याद धरण उ मनखी चैंछ,
मदद हमरि करी जैल |
हमुल मदद जो कैकि करि,
उकैं भुलण चैं पैल ||

देशप्रेम जति घटते जां,
कर्म संस्कृति क नाश |
निहुन कभैं भल्याम वां,
सुख शांति हइ टटास ||

पूरन चन्द्र काण्डपाल
26.09.2017

No comments:

Post a Comment