खरी खरी - 93 : दोहा सप्तक (कुमाउनी)
कविता मनकि बात बतै दीं,
कसै उठी हो उमाव |
बाट भुलियाँ कैं बाट बतै दीं,
ढिकाव जाई कैं निसाव||
द्वि आखंर हंसि बेर बलौ,
बरसौ अमृत धार |
गुस्स्म निकई कडू आंखर,
मन में लगूनी खार ||
लालच जलंग पाखण्ड झुटि,
राग -द्वेष अंहकार |
अंधविश्वास अज्ञान भैम,
डुबै दिनी मजधार ||
तमाकु सुड़ति शराब नश,
गुट्क खनि धूम्रपान |
चुसनी माठु-माठ ल्वे हमर,
बेमौत ल्ही लिनी ज्यान ||
धरो याद इज बौज्यू कैं,
शिक्षक सिपाइ शहीद |
दुखै घड़िम ल्हे भुलिया झन,
धरम करम उम्मीद ||
याद धरण उ मनखी चैंछ,
मदद हमरि करी जैल |
हमुल मदद जो कैकि करि,
उकैं भुलण चैं पैल ||
देशप्रेम जति घटते जां,
कर्म संस्कृति क नाश |
निहुन कभैं भल्याम वां,
सुख शांति हइ टटास ||
पूरन चन्द्र काण्डपाल
26.09.2017
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