Sunday 10 September 2017

Kanoon ka majak : कानून का मजाक

खरी खरी - 80 : कानून का मजाक 

     हाल ही में गणपति पूजा उत्सव मनाया गया राजधानी में । इस अवसर पर मना करने पर भी लोगों ने जलस्रोतों को विसर्जन के नाम से दूषित किया । दिल्ली में यमुना नहर का बुरा हाल हो गया और यमुना नदी को भी मूर्ती विसर्जन से प्रदूषण की पराकाष्ठा तक पहुंचा दिया । नहर के किनारे नेसनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) के बोर्ड भी लगे हैं जिनमें ₹5000/- नहर में कूड़ा/विसर्जन करने पर जुर्माना भी है। फिर भी खूब फैंका, बेझिझक फैंका, कोई दंडित नहीं हुआ ।

     5 सितंबर शिक्षक दिवस पर मैं एक कार्यक्रम हेतु कंस्टीट्यूसन क्लब नई दिल्ली जा रहा था । पटेल चौक मेट्रो स्टेशन पार करते ही नीति आयोग और रिजर्व बैंक के मध्य गेट के सामने एक व्यक्ति ऑटोरिक्शा में बहुत से केले लाया और बंदरों को बुला-बुला कर उन्हें केले खिलाने लगा । बहुत से बंदर आ गए और बीच सड़क में केले खाते हुए उन्होंने सड़क जाम कर दी । केले के छिलकों से सड़क भर गई । वन्य कानून के अनुसार ऐसा करना दंडनीय है । वह व्यक्ति बोला "मैं तो हनुमानों को रोज केले खिलाऊंगा । भाड़ में जाय तुम्हारा कानून-फानून ।"

     उक्त दोनों परिदृश्यों से पता चलता है कि हमारे देश में कानून की अवहेलना करने पर कोई दंड नहीं मिलता । उक्त दोनों ही घटना दिन में खुलेआम हुई, कानून के रक्षकों के सामने हुई परंतु कानून को धता-बता दिया गया । इस हाल में क्या भारत कभी विकसित राष्ट्र बन सकता है ? वोट के खातिर हमारे देश में कानून नहीं मानने वालों को वे कुछ नहीं कहते सिर्फ कानून बना कर कर्तव्य की इतिश्री कर देते हैं ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
10.09.2017

No comments:

Post a Comment