Sunday 17 September 2017

Sarad paksh ashubh kyon ? पितृपक्ष अशुभ क्यों ?

खरी खरी - 86 : सराद पक्ष अशुभ क्यों ?

     एक तरफ कुछ लोग कहते हैं कि पितर हमारे देवता हैं, वे सराद पक्ष में स्वर्ग से आकर मृत्युलोक में विचरण करते हैं । दूसरी तरफ वही लोग कहते हैं कि आजकल सराद लगे हैं और कोई भी शुभ काम नहीं करते । पितर हमारे देवता हैं तो पितृपक्ष अशुभ कैसे हो गया ? पहले तो स्वर्ग एक काल्पनिक शब्द है । स्वर्ग कहीं नहीं है । यदि कहीं स्वर्ग होता तो अंकल शैम (अमेरिका) ने वहां कब का कब्जा कर लिया होता ।

     मृत्यु के बाद हमारी पंचतत्व की देह मिट्टी में मिल जाती है और हम मृतक का दाह संस्कार कर देते हैं । जो जन्म लेगा वह एक दिन अवश्य मरेगा । सराद शब्द 'श्रद्धा' का अपभ्रंश है । हम अपने स्वजनों को उनकी जयंती या पुण्यतिथि पर जरूर याद करें । उनके सम्मान में यथाशक्ति सामाजिक कार्य करें या गरीबों अथवा किसी सुपात्र को दान दें । सराद में भात या आटे के पिंड (ढीने) तो वहीं पर रह जाते हैं और धन-द्रव्य पंडित की जेब में जाता है । भलेही पितर अपने जीवन में भूखे रहे हों, ब्राह्मण के लिए भोज बनता है । कोई कौवे को खिला रहा है तो कोई बामण ढूंढ रहा है । 

     जो जीते जी अपने माँ बाप की सेवा न करता हो, उसे ये श्राद्ध कर्म उनके मरने के बाद दिखावे में या डर से करने की जरूरत नहीं है । जब कहीं स्वर्ग है ही नहीं तो फिर सराद में जो पकवान रखे जाते हैं वे तो वहीं पर पड़े रहते हैं । यह एक व्यर्थ का दिखावा है । 'ब्रह्मभोज' के माध्यम से यह पितरों के पास पहुंचेगा' यह कथन एक पाखंड है । 

      पितरों के नाम से यथाशक्ति दान जरूर हो परन्तु यह पिंड बनाना फिर इन पिंडों को हटाना एक आडम्बर है । जब पितर सरादों में पृथ्वी पर आए हैं तो फिर वे सराद में आकर यह सब खाते क्यों नहीं, इसका जबाब कोई नहीं देता । इस भ्रम से ही कुछ लोगों का व्यवसाय चल रहा है । पितरों को सबसे बड़ी श्रध्दांजलि यह है कि हम उनकी प्रत्येक जयंती तथा पुण्यतिथि पर एक पौधा रोपें ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
17.09.2017

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