Tuesday 26 September 2017

Kaam krodh mad lobh moh : काम क्रोध मद लोभ मोह

खरी खरी- 94 : काम क्रोध मद लोभ मोह

     मैं कोई संत नहीं हूं, न साधु हूं और न बाबा । मैं कोई धर्माचार्य, आचार्य, पंडित, गुरु, सद्गुरु भी नहीं हूं । इन श्रेणियों में जो भी मनीषी आते हैं मैं उनके समकक्ष तो कुछ भी नहीं हूं । खाक दर खाक, सूचे न पाक । फिर भी काम, क्रोध, मद, लोभ और मोह इन पांचों के विषय में जो अल्पज्ञान मुझे है उसके अनुसार ये पांचों मानव के लिए ठीक नहीं हैं और यदि इन पर नियंत्रण नहीं रहा तो ये मानव को दानव बना देते हैं ।

     विषय बहुत विस्तृत है परंतु चर्चा सूक्ष्म में करूंगा । काम अर्थात वासना केवल भार्या-पति तक ही रहे तो काम बुरी चीज नहीं है । काम नहीं होता तो दुनिया भी आगे नहीं चलती । लेकिन काम जब परिधि लांघ कर बाहर जाता है तो वहां पहुँचा देता है जहां आजकल पाखंड सनित कुछ तथाकथित नामी-गिरामी बाबा पहुंच गए हैं । अतः काम को नियंत्रण में रखना होगा वर्ना यह काम तमाम कर देगा ।

     क्रोध तो मनुष्य का नाश कर देता है । क्रोध से बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है और  दिमाग सिकुड़ जाता है ।क्रोध एक क्षणिक पागलपन है जिसका अंत पाश्चाताप के साथ होता है जैसे कि 'रोड रेज' में व्यक्ति गोली चला देता है । मद अर्थात नशा भी मानव के लिए विनाशकारी है । कोई भी नशा भलेही वह शराब, धूम्रपान, तम्बाकू, चरस आदि कुछ भी हो, ये देर-सबेर मनुष्य का खात्मा कर देते हैं ।

     लोभ अर्थात लालच तो बुरी बला है जो मनुष्य को भ्रष्ट बना देता है । लालच से ही घूसखोरी पनपती है, भाई-भतीजावाद बढ़ता है और एक न एक दिन लालची व्यक्ति दंडित तो होता है । मोह-माया का चक्कर भलेही पांचवे क्रम में है परंतु यह भी कम खतरनाक नहीं । हम सब इसके चक्कर में फंस कर 'मैं - मेरा' रटते हुए 'तू-तेरा' भूल गए हैं । 

     इस तरह ये पांचों हमारे दुखों की जड़ हैं । इन्हें नियंत्रण में रखने से जीवन सुचारु रूप से चल सकता है । हमारी पांचों ज्ञानेन्द्रियाँ हमें इन पांचों की ओर घसीटती हैं । तुलसी जी कह गए हैं-

अलि पतंग गज मीन मृग
जरै एक ही आंच,
तुलसी वह कैसे बचे
जाको व्यापै पांच ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
27.09.2017

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