Saturday 19 August 2017

Naaree ka rin : नारी का ऋण

मीठी मीठी - 24 : नारी का ऋण

मानव जाति ऋणी नारी की
माने जग या ना माने,
नारी के बलिदान त्याग पर
स्थिर मानवता सब जाने ।

वैसे तो हर नारी से
मानव का कोई है रिश्ता,
हर रिश्ते में बनी है नारी
मानव के लिए एक फरिश्ता ।

लेकिन रिश्ते चार हैं ऐसे
जिन बिन जीवन है ही नहीं,
मां बहन पत्नी बेटी बन
प्रकट हुई वह सारी मही ।

मां बनकर नारी इस जग को
जीवन अमृत देती है,
कर अपना सबकुछ न्यौछावर
जग से कुछ नहीं लेती है ।

घेरे विपत्ति या सुख-दुख होवे
बहन दौड़कर आती है,
राखी दूज त्यौहार पै आकर
अमर स्नेह बरसाती है ।

जीवन रथ एक चक्र वह
बिना उसके रथ बढ़ता नहीं,
बिन भार्या जीवन एक पतझड़
जिसमें सुमन खिलता ही नहीं ।

बेटी बन जब भी नारी
जिसके घर में आई है,
हो गई कुर्बान भलेही
लाज दो घर की निभाई है ।

यदि न होती नारी जग में
मानवता नहीं टिक पाती,
अपने हर रिश्ते से जग को
ऋणी सदैव बना जाती ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
20.08.2017

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