Friday 18 August 2017

Haam aajad chhyoon : हाम आजाद छ्यूँ



 हाम आजाद छ्यूं (व्यंग्य)  


    आज क माहौल में आपण इर्द- गिर्द में देखीणी कुछ आटपाट तस्वीरों कैं आज कि य व्यंग्य चिठ्ठी समर्पित छ | लगभग द्वि सौ वर्ष फिरंगियों कि गुलामी क बाद देश 15 अगस्त 1947 हुणि आजाद हौछ | 26 जनवरी 1950  हुणि हमर संविधान लागु हौछ जमें आज तक 120 है ज्यादै संसोधन लै है गईं | संविधान ल हमुकें जो आजादी दि रैछ उ पर हमूल नि सोच क्यलैकि हमार दिमाग में आपणि आजाद संहिता पैलिकै बै ड्यार डाइ बेर भै रै | हमरि य अणलेखी आजादी कि न क्वे सीमा और न क्वे रूप | औरों कि परवाह करिए बिना ज्ये हमुकैं भल लागूं या हमर मन ज्ये करुहैं करूं हम उई करनू भलेही यैल कैकैं परेशानी हो, या क्वे छटपटो, क्वे मरो या कैकै क्ये नुकसान हो ।


     आब हमरि आपण बनाई आजादी कि चर्चा करनू तो सबूं है पैली छ बलाण कि आजादी | हमुकैं क्वे लै टैम पर, क्ये लै, कत्तीकैं लै बिना सोची – समझिए खप्प पाणी खायीन जस बलाण कि पुरि छूट छ | न नान- ठुल क ख्याल और न स्यैणि- मैंस क ध्यान | हमरि भाषा जतु लै अभद्र या अश्लील हो बेरोकटोक निडर हैबेर जोर- जोरल चिल्लाण है हमूकैं क्वे रोकि नि सकन | उसी हमरि संसद में लै कुछ लोगों को असंसदीय भाषा बलाण कि छूट छ | गन्दगी फैलूण हमर जन्मसिद्ध अधिकार छ | हम कैं लै- गली, मोहल्ला, ग्वैर, सड़क, कार्यालय, सार्वजनिक स्थान, प्याऊ, जीना -सीड़ी, रेल, बस में बेझिझक थुकि सकनूं | बस में भै बेर भ्यार कैकै लै ख्वार में, द्वि पईंय क सवार में  या कार में थुकण कि हमुकैं खुल्ली छूट छ | कार चलूं रौछा तो क्ये बात नि हइ, कै लै पच्च चारी थुकि द्यो, क्वे क्ये नि कवा | जै में पड़ल उ द्वि-चार गाइ द्यल, वील हमू कैं क्ये फरक पडूं ?


     मल- मूत्र विसर्जन कि लै हमुकैं पुरि छूट छ | रेल की पटरी, नहर- नदी-सड़क क किनार, कैं लै करो क्वे रोकणी न्हैति | क्वे देखैं रौछ त देखण द्यो, तुम अणदेखी करि द्यो | क्वे बिलकुल पास बै गुजरछ तो घुना में मुनइ घुसै द्यो, देखणी थुकि बेर निकइ जाल | पेशाब त तुम कत्ती कैं लै करि सकछा | दीवाल पर, पेड़ क जड़ या तना पर, बिजुलि- टेलेफोन क खम्ब पर, ठाड़ि हई बस या कार क पहियों पर, सड़क क किनार या कुण या मोड़ पर या जां मन करो उतै | आपण घर छोडि बेर हमुकैं कैं लै कूड़- कभाड़ लाफाउण कि लै पुरि छूट छ | फल- मूंगफली या अण्डों क छिकल, बची हुयी खाण, पोस्टर- कागज, प्लास्टिक थैली, गुटका- पान मसाला पाउच, माचिस तिल्ली, बीडी- सिगरेट क डाब- ठुड्ड, डिस्पोजेबल प्लेट- गिलास, बोतल, नारियल आदि कैं लै लुढ़कै दयो | झाडू लगौ और कुड़ पड़ोस कि तरफ धकै द्यो | कुड़ क ढेर यसि जाग लगौ जां य दुसर कि समस्या बनो | घर में सफेदी करौ, मलू या बची हुई वेस्ट पार्क, सड़क या गली में खेड़ो, क्वे रोकणी न्हैति |


      हमुकें आपण जानवरों कैं सड़कों में खुल छोड़ण कि पुरि छूट छ | गोरु, भैंस या सुंगर क झुण्ड दगै क्वे टकरि बेर मरो हमरि बला ल | हमूल कुकुर पाई रईं त उनुकैं सड़क या पार्क में त घुमूल | टट्टी- पेसाब करूण कै लिजी त हाम उनुकैं वां लिजानू | पार्क- सड़क में त सबूंकै हक़ हय | लोगों कैं देखि बेर आपण ज्वात- चप्पल बचै बेर हिटण चैंछ | हमरि यातायात सम्बंधी आजादी त असीमित छ | बिना इशार दिए मुड़ण, रात में प्रेशर हौरन बजूण उ लै कैकं बलूण क लिजी, तेज रफ़्तार ल वाहन चलूण, दु-पइय में पांच -छै झणियाँ कैं भटाउण, दुसर कि या कैकी लै जाग में आपण वाहन ठाड़ करण, प्रार्थना करण पर लै बस नि रोकण, बस में धूम्रपान करण, स्यैणियां कि सीटों पर बैठण, भीड़ क बहान ल बस में स्यैणियां क बदन दगै आपण बदन रगड़नै अघिल निकउण, सयाण लोगों कि अणदेखी करण, शराब पी बेर या नश करि बेर वाहन चलूनै निर्दोष नागरिकों कैं टक्कर मारि बेर रफूचक्कर हुण कि लै हमूकैं पुरि छूट छ |


     कां तक बतूं, आपणि आजादी क अणगणत छूट क हाम खूब आनंद ल्हीं रयूं | स्यैणियां कैं टकिटकि लगै बेर चाण, उनू पर कटाक्ष करण, द्विअर्थी संवाद बलाण, बहलै –फुसलै बेर उनुकैं आपण चंगुल में फ़सूण, उनर यौन शोषण करण और उनर बनी- बनाई घर उजाड़णण कि हमुकैं खुल्ली छूट छ | हमुकैं झूटि बलाण, कछरि में बयान बदलण, बयान है मुकरण, घूस दीण, धर्म-सम्प्रदाय क नाम पर जहर फोकण, असामाजिक तत्वों कैं संरक्षण दीण, क़ानून कि अवहेलना करण, रात कै देर तक पटाखा चलूण, कटिय डाइ बेर बिजुलि कि चोरि करण, सार्वजनिक स्थानों पर नश -धूम्रपान करण, कैकै लै चरित्र हनन करण, अश्लीलता देखण और पढ़ण, कन्याभ्रूण कि हत्या करण, कालाबाजारी- मिलावट और तश्करी करण, फर्जी डिग्री -प्रमाण पत्र लहीण,  फुटपाथ या बाट खोदण, सड़क पर धार्मिक काम क नाम पर तम्बू लगूण, बिना बताइये जलूस या रैली निकाउण, यातायात जाम करण, गटर क ढक्कन या पाणी क मीटर चोरण, पार्कों की सुन्दरता नष्ट करण या डाव- बोट काटण, विसर्जन क नाम पर नदियों में रंग-रोगन ज्येड़ी मूर्ति बगूण या धार्मिक कुड़ लफाउण, राजनीति में बिन तई लोटिय बनण, शहीदों और राष्ट्र भक्तों कैं भुलण और सरकारी दफ्तरों में बिन काम करिए तनख्वा ल्हीण सहित हमरि कएक स्वतंत्रता छीं |


      यूं सबै अटपाट स्वतंत्रता हमूं कैं कां ल्ही जाल ? क्ये येकै लिजी हमार अग्रज शहीद हईं ? क्ये यसै मनमर्जी क तांडव करण क लिजी हम पैद हयूं ? क्ये हमूकैं दुसार लोगों कि ज़रा लै परवा छ ? हम आपण व्यवहार कब बदलुल ?  यूं सवालों कैं हमूल अणसुणी नि करण चैन  और य व्यंग्य में वर्णित आजादी क बार में आपुहैं जरूर सवाल करण चैंछ  |

पूरन चन्द्र काण्डपाल, 


रोहिणी दिल्ली


18.08.2017


 


 


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