Thursday 10 August 2017

Dharmik hone ka dikgawa : धार्मिक होने का दिखावा

खरी खरी - 61 : धार्मिक होने का दिखावा

     धार्मिक आडम्बर हमारी जीवन-शैली बन गए हैं । हम प्रतिदिन किसी न किसी धार्मिक आयोजन में सहभागिता निभाते हैं । वहां हम ऐसा अभिनय करते हैं जैसे कि हम एक अच्छे इंसान हैं जिसे अपने पड़ोस, समाज और देश की बहुत चिंता है तथा हम देश के प्रत्येक कानून का बखूबी आदर करते हैं और हमने स्वयं में सुधार कर लिया है ।

     सत्य तो यह है कि हम पूरी तरह से दिखावे की जिंदगी जी रहे हैं और बाजार संस्कृति के अधीन होकर सामाजिकता, नैतिकता, देश-प्रेम, पड़ोस-प्रेम, परोपकार, कर्तव्यपारायणता, ईमानदारी , धैर्य, संयम, सहनशीलता सहित जीवन की अमूल्य निधियों को तिलांजलि दे चुके हैं । हम चोरी की बिजली से धार्मिक पंडाल की जगमगाहट करते हैं और आस्था के नाम पर सड़क या पार्क किनारे अवैध धार्मिक निर्माण करते हैं । ध्यान से देखने पर इस तरह की कई कानून अवहेलना आपको अपने ही क्षेत्र में दिखाई देंगी ।

     हमें धर्म के अर्थ को समझते हुए दिखावे के आडंबरों में समय बर्बाद नहीं करना चाहिए और स्वयं में बदलाव लाना चाहिए । कम से कम ऐसे ढकोसलों से तो बचना चाहिए जिससे आपके इर्द-गिर्द के लोगों के जीवन में बाधा पड़ती हो । जन- पीड़क दिखावा अनैतिक ही नहीं अपराध भी है ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
11.08.2017

     

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