Monday 13 July 2020

Uttrakhand mein baisi :उत्तराखंड में बैसि

खरी खरी - 663 : उत्तराखंड में 'बैसि '

        उत्तराखंड में सौण (सावन) में कुछ लोग बैसी करनीं | चनरदा बतूरईं, “कुमाउनी में लेखी एक कहानी किताब छ ‘भल करौ च्यला त्वील’ ( लेखक पूरन चन्द्र काण्डपाल -2009) | य किताब में एक कहानी छ ‘बैसी में ल्हे बद्यल’ |” चनरदा ल कहानि शुरू करी, “उत्तराखंड में बैसीक मतलब छ बाइस दिन तक गौं कि धुणी में रोज जागर | (जागरक मतलब जां डंगरी (डा. एस एस बिष्ट ज्यूक अनुसार ‘देव नर्तक’ ) नाचनी और दास (जगरिय) नचूनीं | य दौरान जो लोग बैसी करनीं ऊँ यकोइ खानी और दुकोइ नानी | नियमक अनुसार बाईस दिन तक भक्ति करनी और आपण घरकि बिलकुल लै बात नि करन | इनार घराक लोग लै इनुहें मिलु हैं नि ऊंन | बाईस दिन तक यूं दाड़ी लै नि बनून | पर आब समय  कैं आग लैगो, य बैसी लै दिखावै कि रैगे |”  

    चनरदाल कहानि अघिल खसकै, “एक आदिमल मैंकैं आपण गौं कि बैसि कि पुरि कहानि बतै | द्वि डंगरियां कूण पर गौं वाल बैसिक लिजी मानि गाय | हरेक घर बटि द्वि हजार रुपै मांगी गाय और य लै बतै दे कि जो ज्यादै द्याल भगवान् वीक उतुक्वे ज्यादै भल करल | जो नि दी सकछी वील लै करज गाड़ि  बेर रुपै जम करीं | 

     उ आदिमल एक दिन कि कहानि बतै, “एक दिन मि धोपरि कै धुणी में आयूं | उता वां सिरफ द्वि डंगरी छी | उनू दिना चौमासि टिमाटर, कोपी, बीन और सगीमर्च कि फसल है रैछी | गौंक मैंस जैक पास जतू साग-पात हय दनादनी बेचै रौछी | गौं बै द्वि रुपै - चार रुपैं किलो माल खरीदी बेर पांच-छै गुण ज्यादै कीमत पर माल शहर हूं जां रौछी | मील द्विए डंगरियां हूं हाथ जोड़ि बेर कौ, “अहो आदेश”| बैसि में भैटियां हूं नमस्कार करणक य ई तरिक छ | उनूल जवाब दे ‘अहो आदेश’| ऊं गेरू धोति लपेटि बेर आसन बिछै बेर भै रौछी | उनूल मि हूं इशार करनै कौ ‘भैटो भगत’ | ‘जो आदेश’ कौनै मि भै गोयूं | यूं द्विए मि कैं पच्छाण छी लै | एकैल मि हूं पुछौ, “कतू डाल टिमाटर न्हैगीं और भौ क्ये चलि रौ ? फलाणक कतू न्हैगीं ? अमकाणक कतू न्हैगीं ? और नईं-ताजि क्ये हैरीं गौं में ? मील उनुकैं सब बता और थ्वाड़ देर भै बेर मि नसि आयूं ?

           बैसि में भक्ति करणक त नाम छी, पर इनर ध्यान चौबीस घंट घर-गौं कि तरफ छी | चालिस घरों बै द्वि- द्वि हजार कनै इनूल अस्सी हजार रुपै इकठ्ठ करीं और राशन, साग, घ्यूं, तेल, फल, इनण, दै, दूद, धूप, बत्ती यूं सब भेट-घाट चड़ाव में ऐ गाय | आखिरी दिन इनूल भनार करौ | लोग आईं और खै-पी बेर न्है गईं | य ई गौं में उ साल दर्जा दस और बारक इमत्यान में क्वे लै नान पास नि हय |  

     अगर गौं वाल हरेक परिवार बै एक्कै हजार रुपै लै इकठ्ठ करि बेर यूं नना लिजी अंगरेजी, गणित और विज्ञानक ट्यूशन धरना तो यूं सबै नना कि जिन्दगी बनि जानि | गौं में पुस्तकालय हुनौ या एक अखबार हुनौ तो ननाक ज्ञान बढ़न | पर यस सुझाव गौं में कैक समझ में नि ऐ सकन | येकैं ऊं भल काम नि समझन | बैसि करि बेर डंगरियों क प्रचार हुंछ | उनर रुजगार, रुतवा और कद बढूं | उनुकैं गौंक ननाक पास-फेल सै के लै मतलब न्हैति |

पूरन चन्द्र काण्डपाल 


14.07.2020


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