Tuesday 28 July 2020

Apraadh bodh hi praayshchit : अपराध बोध ही प्रायश्चित

खरी खरी - 670 : अपराध बोध ही प्रायश्चित


एक बड़ा अपराध

फिर से कर लिया है,

कत्ल अपनी आत्मा 

का सह  लिया  है ।

नजरों में लोगों की मैं

एक भला इंसान हूं,

कर्म ऐसा कर लिया है

जैसे मैं शैतान हूं ।

आंखें अपने आप से मैं

अब मिला सकता नहीं,

आत्मा झकझोरे मुझको

बोल कुछ सकता नहीं ।

हो गया अपराध जब

कंपकपाने मैं लगा,

जान जाए जग न सारा

सकपकाने मैं लगा ।

नहीं जानता क्यों मुझे वो

क्षमा यूं ही कर गया,

निगाहों के आगे उसके

जीते जी मैं मर गया ।

विश्वसनीयता आज से वह

कैसे करेगा जगत पर,

विश्वास के क्षण पर उसे

आ जाऊंगा मैं ही नजर ।

बिना मांगे, मौन हो वो

क्षमा मुझे कर गया,

है उच्च क्षमा करने वाला

बात साबित कर गया ।

घृणा अपने आप से

हृदय मेरा अब कर रहा,

वो क्षमा मुझे कर गया

पर मैं नहीं कर पा रहा ।

प्रायश्चित अपराध का

करना जो चाहो तुम अभी,

पुनरावृति अपराध की

होने न देना तुम कभी ।

(अपराध का बोध होने पर ऐसा होता है । यह महसूस करने की बात है । किसी भी अपराध का प्रायश्चित है उसे दोहराया न जाय।)

पूरन चन्द्र काण्डपाल

29.07.2020


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