खरी खरी - 666 : कबीर का बगीचा
आजकल कबीर की बात हो रही है, मगहर की भी बात हो रही है । क्या उनके अंधविश्वास विरोध का भी प्रचार करेंगे ? कबीर दास एक बार स्नान करने गये वहीं पर कुछ पंडे (ब्राह्मण) अपने पूर्वजों को पानी दे रहे थे । तब कबीर ने भी स्नान किया और पानी देने लगे । इस पर सभी ब्राह्मण हँसने लगे और कहने लगे कि "कबीर तू तो इन सब में विश्वास नहीं करता, हमारा विरोध करता है और आज वही कार्य तुम क्यों कर रहे हो जो हम कर रहे हैं ?
कबीर ने कहा, "नहीं, मैं तो अपने बगीचे में पानी दे रहा हूँ । "कबीर की इस बात पर ब्राह्मण लोग हँसने लगे और कबीर से कहने लगे, "कबीर तुम बौरा गये हो, तुम पानी इस तलाब में दे रहे हो तो बगीचे में कैसे पहुँच जायेगा ? कबीर ने कहा जब तुम्हारा दिया पानी इस लोक से पितरलोक तुम्हारे पूर्वजों के पास पहुंच सकता है तो मेरा बगीचा तो इसी लोक में है वहाँ कैसे नहीं जा सकता है? सभी ब्राह्मणों का सिर नीचे हो गया ।
देना है पानी, भोजन, कपडा़ तो अपने जीवित माँ बाप को दो । दिल से उनकी सेवा करो । उनका सम्मान करो । उनकी आत्मा को मत दुखाओ । उनके जाने के बाद तुम जो भी देना चाहोगे, ब्रह्मभोज कराओगे, वह उन तक तो नहीं बल्कि पाखंडियों के पास पहुँचेगा ।
बुद्ध से बुद्धि मिली ,
कबीर से मिला ज्ञान
करना है करो प्यारो
जीते जी सम्मान ।
(यह किसी मित्र की भेजी हुई पोस्ट है जो अच्छी लगी और आप मित्रों तक पहुंचाने का प्रयास है ।)
पूरन चन्द्र काण्डपाल
20.07.2020
No comments:
Post a Comment