Sunday 12 July 2020

Chhiluk upnyaas sameeksha : छिलुक उपन्यास समीक्षा

मीठी मीठी - 483 : ' छिलुक ' उपन्यास - समीक्षा

(समीक्षक - राजू पांडे, बगोटी चंफावत, उत्तराखंड )

    पूरन चन्द्र काण्डपाल जी हिंदी और कुमाउनी भाषा के शीर्ष रचनाकार हैं, हिंदी और कुमाउनी के उनकी कईं पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, एक  कार्यक्रम में दिल्ली में उनसे मुलाकात हुयी, गजब प्रभावशाली और उर्जात्मक ब्यक्तित्व। मुलाकात के दौरान उन्होंने स्नेह से अपनी एक पुस्तक "छिलुक" (कुमाउनी उपन्यास ) मुझे भेंट दी।

"छिलुक" कुमाउनी  भाषा में लिखा गया उपन्यास हैं, जो कई सामाजिक कुरीतियों पर करारा व्यंग करता हैं, उत्तराखंड के रीती रिवाजों को बहुत सुन्दर तरीके से लोगों के सामने रखता है और उत्तराखंड के लोगों के द्वारा विकास के अभाव में झेली जा रही कठिनाइयों को बहुत बारीकी से रेखांकित करता हैं।

रिश्तों को कैसे बनाया और जिया जा सकता है इसके लिए कुछ पात्रों को बड़ी कुशलता से गढ़ा गया है, किसान देव, हंसा दत्त, पुष्पा और हरदत्त के माध्यम से मानवीय जीवन के आदर्शों को स्थापित किया गया हैं, "तुम जवैं लै हया और च्यल लै हया", ये एक वाक्य रिश्तों की प्रगाढ़ता को नूतन रूप देता है।  उपन्यास में बहुत से घटनाक्रम पाठक की आँखों को भिगो देते है, बेटे (कैलाश) की नौकरी का समाचार और मां का कहना "आज मेरी आँखा कि जोत बढ़ि गे च्यला", छोटे बेटे (हेमू ) को बुआ पुष्पा के घर पढ़ने भेजने के फैसले पर उसकी मां (सरु) का कहना "यतु नान भौ कैं अल्लै बै बनवास नि करो भै, मि मरि जूल", पुष्पा का अपने मायके की तारीफ में कहना "म्यार मैतौड़ सबूं है भल" और पुष्पा के पूछने पर कैलाश कहाँ है उसकी मां का जवाब "दा यफ्नै डोई रौ हुनल कैं" पाठकों के चेहरे पर मुस्कान ले आता है।

बुबु का अपने परिवार के लिए स्नेह रोमांचित करता है और पाठक को उसके बचपन में ले जाता है,  "बुबु  तुमार खलेति में बै एक टॉफी निकाई ल्यूं " और "जा नतिया आपणी पाटि-दवात ल्या" जैसे वाक्य कथानक को सजीव कर देते हैं।

काण्डपाल जी ने पहाड़ों की सबसे बड़ी समस्या "शराब" और उसके दुस्प्रभाओं को कथानक और पात्रों के माध्यम से लोगों तक पहुंचाने का कार्य किया है, "कतू बोतल ल्यैह रौछे रै मधिया?" और "ऐ गछा सालो आपणी औकात पर"  शराबियों की मानसिकता को दर्शाया है दूसरी तरफ शराबी पति से परेशान महिला द्वारा शराब बैचने वाले को "हौ नरुवै कि कूड़ि कैं आग लै जाल" गाली देना उसकी पीड़ा को प्रदर्शित करता है,  शराब की लत से अपनी अच्छी जिंदगी लोग तबाह कर रहे है।

पूरन चन्द्र काण्डपाल जी ने बड़ी कुशलता के साथ इस रचना के माध्यम से  शिक्षा की महत्वा को उजाकर किया है, किसन देव् द्वारा अपनी बहू को पढ़ने के लिए प्रेरित करना उत्तराखंड समाज की एक सभ्य तस्वीर दिखाने और शिक्षा के प्रचार का बेहतरीन तरीका जान पड़ता है, "पढ़ी लिखी काम औछ, कभै ख्वाड नि जान"  और  "बाज्यू शिक्षा यसि चीज छ जैकै कवै चोरी नि सकन, जैक बटवार नि है सकन" जैसे वाक्य रचना को दूसरा आयाम दे रहे हैं।

पूरन चन्द्र काण्डपाल जी बड़ी निर्भीकता से सामाजिक और धार्मिक कुरीतियों का विरोध करते हैं, "छिलुक" में भी उन्होंने सामाजिक और धार्मिक कुरीतियों पर प्रहार किया है और बताने का प्रयास किया है की शिक्षा के द्वारा बेहतर जीवन यापन किया जा सकता है, एक प्रसंग में पंडित जी कहते है "जतू दान बामण कै दयला उ सिद स्वर्ग में तुमरि घरवाई क पास पुजौल", एक दूसरे प्रसंग में हंसा दत्त, किसन देव को मजाक में कहते है "ठीक हौय पै तू बन भोव बै डंगरी और मी करनू बामणचारी"।

सामाजिक और धार्मिक कुरीतियों के विरोध के साथ महिला सशक्तिकरण  को सफल  बनाने की अपनी भावनाओं को काण्डपाल जी ने बखूबी निभाया है, वो "मुंडन और गत करण क विधान शास्त्र में केवल च्यला कैं छ" के जवाब में लिखते हैं "शास्त्र लेखणी मैंस छी।  उनुल क्ये लै बात स्वैणियां है पूछि बेर नि लेखि"

काण्डपाल जी ने उत्तरांचल की पीड़ाओं को कुशल शिल्पी की तरह अक्षर चित्रों से पाठकों के ह्रदय पटल पर उकेर दिया है।

पूरन चन्द्र काण्डपाल जी को इस सुन्दर रचना "छिलुक" के लिए असीम शुभकमनाएं, उम्मीद है आपके द्वारा जलाया गया यह "छिलुक" अपनी रोशनी से बहुत से लोगों को सदमार्ग दिखायेगा ।

~ राजू पाण्डेय
बगोटी - चम्पावत (उत्तराखंड)
यमुनाविहार (दिल्ली)
(पाण्डेय ज्यूक सादर आभार - पूरन चन्द्र कांडपाल, 13.07.2020 )

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