Tuesday 8 January 2019

Mere shikshak : मेरे शिक्षक

मीठी मीठी - 212 : मेरे शिक्षक


कर्मठ, सात्विक, मेहनतकश

दंड अनुशासन थामे हुए,

अग्रसर निःस्वार्थ पथिक यह

ध्वज शिक्षा का लिए हुए ।


नीर नदी का जग की जैसे

तृप्त प्यास कर जाता है,

अविरल ज्ञान की धार बहा

सिंचित जग को कर जाता है ।


प्रज्वलित कर सरस्वती दीप वह

निसि वासर हरता तम को

शिक्षा के अथाह जलधि का

परिचय देता है सबको ।


मूल्य चुका नहीं कोई सका है

गुरु प्रदत ज्ञान का अब तक,

गुरु स्वतः दक्षिणा पा जाता

शिष्य चले जो सतमारग ।

नाशवान इस सकल सृष्टि में

रहता अमर गुरु का नाम,

नतमस्तक मैं चरण धूलि पर

करता तुमको कोटि प्रणाम ।


( कलम-कमेट-तख्ती से लेकर आज तक शिक्षा देने वाले शिक्षकों को सादर समर्पित । )


पूरन चन्द्र काण्डपाल

09.01.2019


No comments:

Post a Comment