खरी खरी -370 : लाउडस्पीकर प्रतिबंध
अदालत की नाराजगी के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने पिछले साल धार्मिक स्थलों और सार्वजनिक स्थानों पर बिना सरकारी अनुमति के लाउडस्पीकर लगाने पर प्रतिबंध लगा दिया था । कहा गया था कि शीघ्र ही लाउडस्पीकर हटाने का कार्य आरम्भ हो जाएगा । मज़हब, धर्म, आस्था के नाम पर शोर करने वालों को खुशी-खुशी अदालत के आदेश को मानते हुए स्वयं लाउडस्पीकरों को हटा लेने की अपील भी की गई थी । पता नहीं उस अपील की कितनी मान्यता हुई और उस कानून का पालन हुआ कि नहीं ? देश की राजधानी में तो प्रतिबंध के बाद भी खुलेआम अवहेलना होती है ।
चार दशक पहले सुप्रसिद्ध सिनेस्टार मनोज कुमार ने एक फ़िल्म "शोर" बनाई थी जिसमें ध्वनि प्रदूषण से होने वाले रोगों और परेशानियों को रेखांकित किया गया था । आज समाज में धार्मिक आयोजन के नाम पर पूरी रात लोगों को परेशान किया जाता है । डीजे, बारात के लाउडस्पीकर वाले बैंड, बारात के पटाखों और मंत्रियों के कारों पर लगे उच्च शोर के हूटरों पर भी सख्ती से प्रतिबंध लगना चाहिए ।
जिस आयोजन में डी जे बजता है वहाँ न आप किसी से बोल सकते हैं और न वहाँ खड़े रह सकते हैं फिर भी वहाँ पर हम अपने छोटे- छोटे बच्चों को नाचने के लिए प्रोत्साहित करते हैं क्योंकि हम इस बात से अनभिज्ञ हैं कि उस नन्हे के कान के पर्दों पर इस शोर का कितना दुष्प्रभाव पड़ रहा है । उस शोर से उत्पन्न सिर दर्द के साथ हम वापस आते हैं ।
ध्वनि प्रदूषण से परेशानी तो होती है कई प्रकार के रोग भी इस मानव जनित समस्या से लगते हैं । समाज को दुखित करने वाली शोर जनित इन समस्याओं से निपटने के लिए जन-संगठनों को पूर्ण रूप से सहयोग करना चाहिए । इस कानून का हाल भी नदियों में मूर्ति विसर्जन नहीं करने और रात को पटाखे नहीं चलाने जैसा नहीं होना चाहिए । ये दोनों ही कानून अवहेलना की भेंट चढ़ गए ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
11.01.2019
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