Wednesday 22 November 2017

Yamuna : यमुना का संताप

खरी खरी - 127 : यमुना का संताप

स्वच्छ हुई नहीं 
गंदगी बढ़ती गई,
पर्त कूड़े की तट 
मेरे चढ़ती गई,
बढ़ा प्रदूषण रंग
काला पड़ गया,
जल सड़ा तट-तल
भी मेरा सड़ गया ।

व्यथित यमुना रोवे
अपने हाल पर,
पुकारे जन को
मेरा श्रृंगार कर,
टेम्स हुई स्वच्छ
हटा कूड़ा धंसा,
काश ! कोई तरसे
देख मेरी दशा ।

आह ! टेम्स जैसा
मेरा भाग्य कहां ?
उठी स्वच्छता की 
गूंज संसद में वहां,
क्या कभी मेरे लिए
भी यहां खिलेगी धूप ?
कब मिलेगा मुझे
मेरा उजला स्वरूप ?

पूरन चन्द्र काण्डपाल
22.11.2017

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