Monday 20 November 2017

Padamawati : पद्मावती

खरी खरी -126 : पद्मावत की वीरांगना

    दो सौ करोड़ रुपये के बजट से एक ऐतिहासिक फ़िल्म बनी है  'पद्मावती' जो अभी रिलीज  नहीं हुई और उस पर हंगामा शुरू हो गया । बिना फ़िल्म को  देखे ही विरोध होने लगा है ।  देश में किसी भी फ़िल्म में कुछ गलत नहीं दिखाया जाय इसके लिए सेंसर बोर्ड है, रिव्यू कमिटी है, फिर अदालत है । सेंसर बोर्ड का प्रमाणपत्र तभी मिलता है जब सब ठीक होता है । PK और OMG दोनों फिल्मों को सेंसर बोर्ड का प्रमाणपत्र मिलने के बाद पूरे देश ने जमकर देखा जबकि अंधविश्वास के पोषकों ने इनका भी पहले विरोध किया था ।

     पद्मावती फ़िल्म पर अफवाहों का बाजार गरम है कि इतिहास से छेड़छाड़ की गई है । यह फ़िल्म राजनीति के भंवर में फंसती दिखाई दे रही है । कुछ नेता तो आग में घी डाल रहे हैं । काश ! इतना हंगामा बाल विवाह , कन्याभ्रूण हत्या और दहेज के विरोध में होता तो देश का भला होता । कुछ लोगों ने तो तालिबानी भाषा में सिर और नाक काटने की धमकी तक दे दी । यह हमारे संविधान की अवहेलना है । कलाकारों का नाक - सिर काटने से क्या उस शान की गरिमा बन रही है जिस शान को बचाने के लिए वे अपने को मानते हैं ।

     जायसी ने 'पद्मावत' महाकाव्य की रचना 1540 ई. में की जो अवधी भाषा में है । इस काव्य में कवि की कल्पना की उड़ान बहुत ऊंची है । इतिहास और कल्पना के संगम से कला का जन्म होता है । वीरांगना पद्मावती के प्रति पूरे हिन्द को श्रद्धा है । हम नारी के सम्मान की बात भी करते हैं फिर तालिबानी भाषा के साथ 'नाचनेवाली' बोलकर कलाकार  का अपमान क्यों ? 

     इसी सदी के आरम्भ में मशहूर कलाकार शबाना आजमी (सांसद) के साथ भी कुछ कट्टरवादियों ने इन्हीं शब्दों का फतवा पढ़ा था जिसका पूरे देश ने विरोध किया था । आज सरकार और शासन चुप हैं यह दुखद है । देश का कोई शीर्ष नेता तो बोले कि सेंसर बोर्ड की प्रतीक्षा करो । नेता बोट बैंक के खातिर ऐसा नहीं कहते । 

     मित्रो प्रजातंत्र में विरोध करो, जम कर विरोध करो परन्तु ऐसा हंगामा मत करो जिससे देश का सौहार्द बिगड़े और नफरत पनपे । देश का कानून सर्वोपरि है । कुछ गलत होने पर वह अपना काम करेगा । सेंसर बोर्ड की प्रतीक्षा करनी चाहिए । वीरांगना पद्मावती सहित नारी के सम्मान का पक्षधर समाज का कोई वर्ग विशेष नहीं है बल्कि पूरा राष्ट्र है । 

पूरन चन्द्र काण्डपाल
21.11.2017

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