बिरखांत - 183 : हमरि भाषा कि बात
( यौ बिरखांत '9उं राष्ट्रीय कुमाउनी भाषा सम्मेलन' अल्मोड़ा में 3, 4 और 5 नवम्बर 2017 हैं हुणी आयोजन कैं सादर समर्पित छ ।)
कुमाउनी और गढ़वाली भाषाओं कें संविधान क आठूँ अनुसूची में जब तक जागि नि मिला, यूं भाषाओं क जानकार, लेखक, कवि और साहित्यकार चुप बैठणी न्हैति । चनरदा बतूं रईं, " संघर्ष जारी धरण पड़ल, कुहूक्याव मारण पड़लि । जैकें जब मौक मिलूं य बात कि चर्चा जरूर हुण चैंछ । जनप्रतिनिधियों कि कुर्सि, दुलैच, आसन कैं ढ्यास मारण में कसर नि छोड़ण चैनि । यौ ई उद्देश्य ल अल्माड़ में 3, 4 और 5 नवम्बर 2017 तक तीन दिनी 'राष्ट्ररीय कुमाउनी भाषा सम्मेलन' आयोजित हूंरौ । यौ 2009 बटि उरातार 9उं सम्मेलन छ । आयोजकों हैं 'तेरि खुटी म्यर सलाम ।' सम्मेलन में औणियां रौण -खाण क प्रबंध लोगों कि मदद ल आयोजक (कुमाउनी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति प्रचार समिति, कसारदेवी अल्मोड़ा और 'पहरू' कुमाउनी मासिक पत्रिका, संपादक डॉ हयात सिंह रावत) करनीं ।
रचनाकार आपण काम करैं रईं । लेखें रईं, आफी छपों रईं और फिरी में बाटें रईं । यमें रचनाकारों ल निराश नि हुण चैन । आपणी मातृभाषा लिजी तन-मन- धन खर्च करण सबूं है ठुल पुण्य छ । यौ काम क लिजी दिल क साथ 'पहरू', 'कुर्मांचल अखबार' और 'कुमगढ़' कैं साधुवाद दींण चानू । यूं तपस्वियों है लै ठुल काम करें रईं ।"
चनरदा ल विलुप्त हुणी भाषाओँ पर लै चिंता जतूनै कौ, "एक राष्ट्रीय हिंदी दैनिक समाचार पत्र में यूनेस्को क अनुसार दुनिय में 6000 भाषाओँ में 2500 तुप्त हुण कि आशंका छ । हमार देश में 196 भाषाओं कैं लुप्त हुण क खत्र छ । दुनिय में करीब 200 भाषा यास छैं जनार बलाणी 10 है लै कम रै गईं ।
भाषाओँ क अंत हुण ल संस्कृति क लै अंत है जांछ क्येलै कि यूं एक दुसार क परिपूरक छीं । दुनिया क 96% भाषा केवल 3% आबादी बलैंछ जबकि 97% आबादी 4 % भाषाओं कें बलानी । दुनिय में ज्यादै बलाई जाणी 65 भाषाओँ में 11 भारत में छीं । हमार देश में भाषाई सर्वेक्षण 80 वर्षों बटि नि है रौय । सरकार यैक लिजी गंभीर न्हैति ।
कुमाउनी और गढ़वाली भाषाओँ क बलाणियां कि संख्या उत्तराखंड और देशा क अन्य राज्यों में डेड़ करोड़ है ज्यादै छ । द्विये भाषाओं क साहित्य लै छ और साहित्यकार लै छीं । एक दौर में यूं राजकाज क भाषा लै छी । मान्यता दीण क लिजी यूं द्विए सब शर्त लै पुर करनीं । इनुकैं मान्यता मिलण पर इनरि दिदी हिंदी कैं क्ये लै नुकसान नि ह्वल बल्कि उ और समृद्ध ह्वलि । द्विए भाषाओं कि लिपि लै देवनागरी छ । अगर राज्य सरकार हिम्मत करो तो इस्कूलों में यूं द्विये भाषाओँ कें पढूनै कि शुरुआत है सकीं । जो भाषा लोक में रची- बसी छ उकें मान्यता दींण में डाड़ क्ये बात कि ? "
पूरन चन्द्र काण्डपाल
02.11.2017
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