Monday 2 October 2017

Ram jee kee vedana : राम जी की वेदना

खरी खरी - 97 : राम जी की व्यथा- वेदना

     सीता जी की खोज में भ्राता लक्ष्मण के साथ ऋष्यमूक पर्वत की ओर जाते हुए मुझे प्रभु राम भी मिल गए । प्रणाम करते हुए मैंने उनसे पूछा, "भगवन आप तो मिलते ही नहीं जबकि समाज में रावण पग- पग पर मिल जाते हैं । ऐसी बात नहीं है कि लोग आपको याद नहीं करते । अक्सर आपके नाम से माइक पर सुन्दर काण्ड होते रहता है । रामलीला भी हो रही है । अकेले देश की राजधानी में लगभग 900 से अधिक रामलीलाएं मंचित हो रही हैं । आप तो मर्यादा पुरुषोत्तम हैं । चुप क्यों हैं आप, कुछ तो बोलिये प्रभु ।"

     इस बीच लक्ष्मण मुझे बड़ी बड़ी आंखों से तरेर रहे थे परन्तु वे राम जी की डर से चुप थे । मेरे पुनः आग्रह पर राम जी बोले, "बहुत अच्छी बात है कुछ लोग अवश्य मुझे बड़ी श्रद्धा से याद करते हैं । वे वास्तव में मुझे प्रिय हैं । मेरा स्मरण करते हुए वे जनहित के कार्य भी करते रहते हैं । जहां तक माइक पर सुन्दर काण्ड का प्रश्न है इसमें श्रद्धा कम दिखावा अधिक होने लगा है । तुलसी दास जी सुंदरकांड की रचना कर गए परन्तु कम से कम इसकी एक पंक्ति तो अपने दिल में उतार कर उस पर चलिए । माइक से गली-मुहल्ले में उस समय शोर जरूर  होता है परंतु इसके बाद फिर वही पुराना ढर्रा, वही चाल।"

     प्रभु राम जी आगे बोलते गए, "मैंने तो निम्न वर्ग के शबरी - निषाद को गले लगाया परन्तु मुझ में आस्था रखने का दम्भ भरने वाले आज भी भेदभाव रखते हैं । सुंदरकांड से मेरा स्मरण करते हैं तो उन मर्यादाओं पर भी चलें जिन्हें मैंने मनुष्य रूप में स्थापित किया था । कहीं मेरे नाम पर तो कहीं मेरे मंदिर पर सामाजिक सौहार्द नहीं बिगड़ना चाहिए । विनम्रता, शिष्टता और संयम के अभाव से ही आज समाज में उथल-पुथल मची है । इन्हें अपना लो और फिर देखो सामाजिक समरसता और सौहार्द का वातावरण स्वतः ही लहराने लगेगा ।'"

    इससे पहले कि मैं प्रभु राम जी से कुछ और पूछता वे मेरी अशांत जिज्ञासा को समझते हुए आगे को प्रस्थान कर गए । मेरे मन- मस्तिष्क में राम जी के शब्द अब भी गूंज रहे हैं । काश ! उनके ये शब्द समाज में भी गूंजते तो समाज में वह नहीं घटता जिसकी घुटन में हम सब तड़प रहे हैं ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
01.10.2017

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