Wednesday 25 October 2017

Bachchon se darane : हम बच्चों से डरने लगे हैं ।

बिरखांत-182 : हम बच्चों से डरने लगे हैं |

    आज की बिरखांत बच्चों को समर्पित है | हम अपने बच्चों से डरने लगे हैं और डर के मारे हमने अपने बच्चों से कुछ भी कहना छोड़ दिया है | आए दिन समाचार पत्र या टी वी में हम देखते हैं कि अमुक बच्चा मां या पिता के डांटने पर घर से भाग गया या फंदे पर लटक गया | इस डर के मारे हमने भी बच्चों से कुछ भी कहना छोड़ दिया जो अनुचित है | हमने बच्चों को समय देना चाहिए | प्यार से समझा कर भी बच्चे मान जाते हैं परन्तु यह कार्य शैशव काल से शुरू होना चाहिए | ज्योंही हमें बच्चों में कोई भी अवगुण नजर आने लगे, हमें धृतराष्ट्र या गांधारी नहीं बनना चाहिए | दुर्योधन के अवगुणों को उसके माता-पिता ने नजरअंदाज कर दिया था | गुरु द्रोणाचार्य की बात को भी उन्होंने अनसुना कर दिया |

        जब भी कोई हमसे हमारे बच्चे की बुराई करे हमने बुरा मानने के बजाय चुपचाप उसकी बात को जांचना-परखना चाहिए | कम उम्र के बच्चे भी हमारे दिए हुए मोबाइल या कंप्यूटर पर उत्तेजनात्मक दृश्य देख रहे हैं | देश में 13 साल से कम उम्र के 76 % बच्चे रोज यू ट्यूब में वीडियो देख रहे हैं जिन्होंने अपने अभिभावकों की अनुमति से अपने एकाउंट बना रखे हैं | 

     बच्चों की भाषा भी अशिष्ट हो गयी है | उन्हें घर का खाना कम पसंद आने लगा है | वे चाउमिन, मोमोज, बर्गर, चिप्स, फिंगर फ्राई और बोतल बंद पेय से मोटे होने लगे हैं | घर में भी हम बच्चों को  अनुशासित नहीं रख रहे हैं | प्रात: उठने से लेकर रात्रि में सोने तक बच्चों के लिए समय प्रबंधन होना बहुत जरूरी है | खेल और टी वी पर एक-एक घंटे से अधिक समय अनुचित है | 15 अगस्त या 26 जनवरी की छुट्टी देर तक सोने के लिए नहीं होती |

        कुछ लोग अपने अवयस्क लाडलों को स्कूटर, मोटरसाइकिल या कार चलाने की खुली छूट दे रहे हैं | गली-मुहल्ले में अक्सर यह दृश्य देख जा सकता है | अवयस्क लाडला अपने वाहन से पास ही खेल रहे बच्चों को कुचल देता है | किसी के निर्दोष बच्चे मारे गए और इस लाडले को सजा भी नहीं होती | रात में ये तरह-तरह के हॉर्न बजा कर लोगों को दुखित कर उड़नछू हो जाते हैं | पुलिस सब कुछ देखती है परन्तु चुप रहती है | ऐसे बच्चों के अभिभावकों के लाइसेंस और वाहन जफ्त होने चाहिए | हाल ही की रिपोट के अनुसार सड़क दुर्घटनाओं में हमारे देश में प्रति वर्ष डेड़ लाख बेक़सूर लोग मारे जाते हैं और तीन लाख लोग घायल होते हैं | इस संख्या में अवयस्क लाडलों द्वारा मारे गए निर्दोष भी शामिल हैं |

      बच्चों के साथ देशप्रेम और शहीदों की चर्चा भी होनी चाहिए | हमें अपने बच्चों के व्यवहार, बोलचाल, संगत, आदत, आहार और स्वच्छता पर अवश्य नजर रखनी चाहिए | यदि अनुशासन आरम्भ से होगा तो आगे चल कर डांटने का प्रशन ही नहीं उठेगा | बच्चों के साथ अभिभावकों का मित्रवत व्यवहार ही उन्हें उज्ज्वल भविष्य की ओर अग्रसर करता है | बच्चों के लिए समय जरूर निकालें अन्यथा एक दिन अभिभावकों को स्वयं बच्चों के साथ किये गए अपने व्यवहार-वर्ताव पर पछतावा होगा ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल 
26.10.2017

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