Sunday 22 October 2017

Patakha dhundh : प्रकाश पर्व पर पटाखा ढूंढ

खरी खरी - 113 : प्रकाश पर्व पर पटाखा धुंध

     पौराणिक कथा के अनुसार जब श्री राम जी 14 वर्ष के वनवास के बाद भार्या और अनुज सहित अयोध्या वापस आये तो प्रजा ने घर -घर दीप प्रज्ज्वलित कर खुशियां मनाई । हमने इस प्रथा-परम्परा को आगे बढ़ाया जिसने आगे चल कर आतिशबाजी का रूप ले लिया। आज वह आतिशबाजी जी का जंजाल बन गयी जिसने सांस लेना ही दूभर कर दिया ।

     19 अक्टूबर 2017 दीपावली की रात को इस मानवजनित विभीषिका के कारण देश की राजधानी में 264 जगहों पर आगजनी हुई जिससे काफी नुकसान हुआ । दिल्ली के अग्निशमन विभाग को आग बुझाने की 204 कॉल आईं और विभाग ने बखूबी अपना कार्य किया । इस घरफूक तमाशे का अंदेशा पहले से ही विभाग को था इसलिए उसने लगभग 90 केंद्र इस सेवा के लिए तत्पर किये थे ।

     इसी तरह दीपावली की रात को दिल्ली के सफदरजंग और आरएमएल अस्पताल में क्रमशः 66 और 29 मामले पटाखा जनित आग से झुलसने के लाए गए । अधिकांश केस आंख और हाथ जलने के थे । चिकित्सकों ने कुछ को छोड़कर अन्य सभी को उपचार के बाद वापस भेज दिया । 

     उस रात तथा उसके बाद की कई रात और दिन तक देश की राजधानी बारूदी आबोहवा में घुटन के साथ जीने को मजबूर है । न्यायालय के प्रतिबंध की खुलेआम धज्जियां उड़ते हम सब ने बेबस होकर देखी । वायुप्रदूषण 9 से 10 गुना तक बढ़ गया ।

     यदि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में पटाखे नहीं फूटते तो ऐसी स्तिथि नहीं होती । न सीने में जलन होती और न सांस लेने में घुटन होती । न बच्चों के नाजुक अंग कुम्हलाते और न वृद्धों की श्वसन क्रिया अवरुद्ध होती । देर रात तक उच्च शोर के पटाखे फोड़ने वालों ने अपने क्षणिक आनंद के लिए पूरे वातावरण को जहरीला बना दिया । कुछ लोगों ने तो इसे धर्म के साथ जोड़ दिया । नुकसान के सिवाय पटाखा फोड़ने से और कुछ नहीं मिलता । हमारी पुलिस और प्रशासन इस बारूदी आबोहवा को रोकने में निष्फल क्यों रहे यह प्रश्न दो दिन बाद भी भैयादूज के दिन तक हवा में गूंज रहा है !!!

पूरन चन्द्र काण्डपाल
22.10.2017

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