Wednesday 11 October 2017

Patakhaa pradooshan : पटाखा प्रदूषण

खरी खरी - 106 : पटाखा प्रदूषण से राहत

      09 अक्टूबर 2017 को सर्वोच्च न्यायालय ने राजधानी दिल्ली में 01 नवम्बर 2017 तक पटाखों की बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध लगाकर राजधानी वासियों को पटाखाजनित प्रदूषण से राहत दी है । इस बार न तो कानों में रुई डालनी पड़ेगी और न धुंए से बचने के लिए खिड़कियां बंद करनी पड़ेंगी । यदि आदेश की पालना ठीक से होगी तो आकाश में धुंध के बादल भी नहीं दिखेंगे । 

     औड-इवन की समर्थक दिल्ली सरकार को इस आदेश पर खुशी मनानी चाहिए । पिछले साल दीपावली पर पटाखों के कारण प्रदूषण स्तर तीन गुना बढ़ गया था और दिल्ली दुनिया की सबसे खराब शहरों में गिनी जाने लगी थी । पटाखे दीपावली की संस्कृति से जुड़े हुए नहीं हैं । यह बाजारीकरण की देन है । दीपावली की संस्कृति में केवल मिट्टी के दीप ही प्रज्ज्वलित किये जाते हैं ।

      कुछ लोग इस आदेश का विरोध हिन्दू- मुस्लिम की तराजू में तोल कर राजनैतिक रोटियां सेंकते हुए करने लगे हैं । जब सरकारें वोट बैंक के खातिर जनहित के कदम नहीं उठाती तभी लोग न्याय की गुहार लगाते हैं । सरकार ने अभी तक नदियों को विसर्जन से बचाने, मूर्तियों के नदी में गिराए जाने तथा नदियों के किनारे शव-दाह किये जाने सम्बन्धी कोई कदम नहीं उठाए हैं । हां, काशी को क्योटो बनाने का राग जरूर छेड़ा था । जब नदियां सूख जाएंगी तो फिर शव-दाह और विसर्जन कहां होगा ?  

      परम्परा-प्रथा तब बनी थी जब आज की तुलना में नदियों में 1000 गुना पानी अधिक था । आज जनसंख्या 1000 गुना बढ़ गई है । ऐसे में प्रथा-परम्परा बदलनी ही पड़ेगी और नदियों- जलस्रोतों को भावी पीढ़ी के लिए बचाना ही होगा । स्मरण रहे प्रथा-परम्परा को मनुष्य बनाता है, प्रथा-परम्परा मनुष्य को नहीं बनाती । अतः खुशी से स्वच्छ दीपावली मनाएं और अपने बच्चों, वरिष्ठों, रोगियों और आम नागरिकों को पटाखा जनित धुंए की घुटन और फेफड़ों के रोगों से बचाने में सहयोग करें ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
12.10.2017

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