Friday 13 October 2017

Char din apavitr kyon ? चार दिन अपवित्र क्यों ?

बिरखांत - 180 :  चार दिन अपवित्र क्यों ?

     एक राष्ट्रीय दैनिक समाचार पत्र में कुछ समय पहले महिलाओं में प्राकृतिक तौर से ऋतु काल (मासिक स्राव) होने के बारे में एक लेख छपा था । लेख में लेखिका कहती हैं  “गुहाटी (असम) के कामाख्या मंदिर की देवी को आषाढ़ के महीने में चार दिन तक राजोवृति होने से मंदिर चार दिन बंद कर दिया जाता है |  फिर चार दिन बात रक्त-स्रवित वस्त्र भक्तों में बांट दिया जाता है | बताया जाता है कि इस दौरान ब्रहमपुत्र भी लाल हो जाती जिसके पीछे अफवाहें हैं कि पानी  के लाल होने के पीछे पुजारियों का हात होता है |” 

     लेखिका ने ‘ रजोवृति के दौरान देवी पवित्र और महिला अपवित्र क्यों’ इस बात पर सवाल उठाते हुए अपने बचपन की घटनाओं की चर्चा की है कि जब वे इस क्रिया से गुजरती थी तो उनकी मां उन्हें अछूत समझती थी | लेखिका ने लेख में कई सवाल पूछे हैं | कहना चाहूंगा कि यहां सवाल स्वच्छता का होना चाहिए न कि महिलाओं की अपवित्रता का | 

     उत्तराखंड में यह स्तिथि होने पर महिलायें  पहले गोठ में (पशु निवास) रहती थीं | बाद में चाख के कोने (मकान का प्रथम तल में बाहर का कमरा) में रहने लगी, परन्तु रहती थी अछूत की तरह | शिक्षा के प्रसार से आज बदलाव आ गया है |  बेटियों का विवाह बीस  से पच्चीस या इससे भी अधिक उम्र में हो रहा है | अब न लोगों को छूत लगती है और न किसी महिला में ‘देवी’ या ‘देवता’ औंतरता (प्रकट) या इसे अघोर माना जाता है | घर –मकान- वातावरण सब पहले जैसा ही है, सिर्फ अब  छूत नहीं लगती | 

     सत्य तो यह है कि वहम (भ्रम), पाखण्ड, आडम्बर और अंधविश्वास के बेत से महिलाओं को दबा- डरा कर रखने की परम्परा का न आदि है न अंत | बात-बात में बहू को देख सास में ‘देवी’ औंतरना फिर गणतुओं, जगरियों, डंगरियों और बभूतियों द्वारा बहू को प्रताड़ित किया जाना एक सामान्य सी बात थी (है) |

 
     वे चार दिन न तो कोई छूत है और न अपवित्रता | यह एक प्रकृति प्रदत क्रिया है जो यौवन के आरम्भ होने या उससे पहले से उम्र के पैंतालीसवे पड़ाव तक सभी महिलाओं में होती है | इस दौरान स्वच्छता सर्वोपरि है बस | राजोवृति को किसी भी दृष्टि से अपवित्र या अछूत नहीं कहा जा सकता । यह भी सत्य है कि इस क्रिया का नियमित होना किसी भी महिला के प्रजनन तंत्र के स्वस्थ होने का प्रमाण भी है । वहम और भ्रांतियों पर मंथन अवश्य होना चाहिए | अगली बिरखांत में कुछ और...

पूरन चन्द्र काण्डपाल
13.10.2017

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