मीठी मीठी - 678 : उगती रहे रोटी
मानवता का तू है मसीहा
सबकी भूख मिटाता है,
अवतारी तू इस मही पर
परमेश्वर अन्नदाता है।
कृषक तेरी ऋणी रहेगी
सकल जगत की मानवता
यदि न बोता अन्न बीज तू
क्या मानव कहीं टिक पाता?
जीवन अपना मिटा के देता
है तू जीवन औरों को,
सुर संत सन्यासी गुरु सम
है आराध्य तू इस जग को।
धन्य है तेरे पंचतंत्र को
जिससे रचा है तन तेरा,
नर रूप नारायण है तू
तुझे नमन शत शत मेरा।
यह देश भी अपना
ये किसान भी अपने
और सरकार भी अपनी,
उगती रहे रोटी खेत में
यही दरकार थी अपनी।
निकले थे घर से
सुनाने अपनी दास्तां,
तीन सौ अठतर दिन का
हुआ कठिन तप पूरा
लौट चलें वापस
अब अपने आसियां।
पूरन चन्द्र कांडपाल
11.12.2021
No comments:
Post a Comment