Sunday 26 December 2021

Anfhvishwaas ka grahan : अंधविश्वास का ग्रहण

खरी खरी - 983 : अंधविश्वास के ग्रहण को भी समझें

       यह बहुत अच्छी बात है कि सोसल मीडिया पर कई लोग ज्ञान का आदान-प्रदान कर रहे हैं, हमें शिक्षित बना रहे हैं परन्तु इसका विनम्रता से क्रियान्वयन भी जरूरी है | जब भी हमारे सामने कुछ गलत घटित होता है, गांधीगिरी के साथ उसे रोकने का प्रयास करने पर वह बुरा मान सकता है | बुरा मानने पर दो बातें होंगी – या तो उसमें बदलाव आ जाएगा और या वह अधिक बिगड़ जाएगा | गांधीगिरी में बहुत दम है | इसमें संयम और शान्ति की जरुरत होती है और फिर मसमसाने के बजाय बोलने की हिम्मत तो करनी ही पड़ेगी | 

      हमारा देश वीरों का देश है, राष्ट्र प्रहरियों का देश है, किसानों का देश है,  सत्मार्गियों एवं कर्मठों का देश है,  सत्य-अहिंसा और सर्वधर्म समभाव का देश है तथा ईमानदारी के पहरुओं और कर्म संस्कृति के पुजारियों का देश है | इसके बावजूद भी हमारे कुछ लोगों की अन्धश्रधा -अंधभक्ति और अज्ञानता से कई लोग हमें सपेरों का देश कहते हैं, तांत्रिकों- बाबाओं का देश कहते हैं क्योंकि हम अनगिनत अंधविश्वासों से डरे हुए हैं, घिरे हुए हैं और सत्य का सामना करने का साहस नहीं जुटा पा रहे हैं | 

      हमारे कुछ लोग आज भी मानते हैं कि सूर्य घूमता है जबकि सूर्य स्थिर है | हम सूर्य- चन्द्र ग्रहण को राहू-केतू का डसना बताते हैं जबकि यह चन्द्रमा और पृथ्वी की छाया के कारण होता है | हम अंधविश्वासियों को सुनते हैं परन्तु खगोल शास्त्रियों या वैज्ञानिकों को नहीं सुनते । हम बिल्ली के रास्ता काटने या किसी के छींकने से अपना रास्ता या लक्ष्य बदल देते हैं | हम किसी की नजर से बचने के लिए दरवाजे पर घोड़े की नाल या भूतिया मुखौटा टांग देते हैं |

      हम कर्म संस्कृति से हट कर मन्नत मांगते हैं,  गले या बाहों पर गंडा-ताबीज बांधते हैं, हम वाहन पर जूता लटकाते हैं और दरवाजे पर नीबू-मिर्च टांगते हैं, सड़क पर जंजीर से बंधे शनि के बक्से में सिक्का डालते हैं, नदी और मूर्ती में दूध डालते हैं और हम बीमार होने पर  या घर में शिशु के न आने पर या किसी भी समस्या का निदान के लिए डाक्टर के पास जाने के बजाय झाड़ -फूक वाले तांत्रिकों अथावा अंधविश्वास का जाल फैलाए सैयादों के पास जाते हैं | 

       वर्ष भर परिश्रम से अध्ययन करने पर ही हमारा विद्यार्थी परीक्षा में उत्तीर्ण होगा । केवल परीक्षा के दिन तिलक लगाने, दही-चीनी खाने या धर्मंस्थल पर माथा- नाक टेकने से नहीं | हम सत्य एवं  विज्ञान को समझें और अंधविश्वास को पहचानने का प्रयास करें | अंधकार से उजाले की ओर गतिमान रहने की जद्दोजहद करने वाले एवं दूसरों को उचित राह दिखाने वाले सभी मित्रों को ये पक्तियां समर्पित हैं - 

 ‘पढ़े-लिखे अंधविश्वासी 

बन गए लेकर डिग्री ढेर,

अंधविश्वास कि मकड़जाल में

फंसते न लगती देर,

पंडे बाबा गुणी तांत्रिक

बन गए भगवान,

आंखमूंद विश्वास करे जग,

त्याग तत्थ – विज्ञान ।

     बदलाव की बयार को कोई थाम नहीं सकता। महिलाओं का शोषण शिक्षा के प्रकाश से अब कुछ कम होने लगा है।  सोसल मीडिया में मित्रों द्वारा मेरे शब्दों पर इन्द्रधनुषी प्रतिक्रियाएं होती रहती हैं | सभी मित्रों एवं टिप्पणीकारों तथा पसंदकारों का साधुवाद तथा हार्दिक आभार | 

पूरन चन्द्र काण्डपाल

27.12.2021

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